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Saturday, 2 September 2017

पांडवों की धरती से स्वर्ग की ओर यात्रा - स्वर्गरोहिणी सतोपंथ यात्रा - 2



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सतो का अर्थ है 'स्वर्ग' और पंथ का अर्थ है 'रास्ता'। सतोपंथ का अर्थ हुआ 'स्वर्ग का रास्ता '। सच में यह यात्रा स्वर्ग का एहसास करवाती है। कहते हैं स्वर्ग आसानी से नहीं मिलता उसी तरह सतोपंथ (स्वर्ग का रास्ता) का रास्ता भी आसान नही है। जब पाँचों पांडव द्रोपदी के साथ हिमालय के इस क्षेत्र में पहुँचे तब उन्हें आगे जाने का कोई रास्ता दिखाई नही दिया। तब उन्होंने भगवान् शिव का ध्यान किया। भगवान् शिव ने उन्हें आगे जाने का रास्ता बताया और अग्निदेव के सामने उनको अपने सारे अस्त्र - शस्त्र और अपने समस्त भावों को त्यागने को कहा। सबने भगवान शिव के कहे का अनुसरण किया, जिस से वो सशरीर स्वर्ग जा सके। इसलिए इसे ' सच्चाई का रास्ता ' भी कहते हैं। 

दुर्गम रास्तों, चट्टानों और ग्लेशियर के बीच में से हो कर की गई यह यात्रा सच में एक अलौकिक शक्ति का एहसास करवाती है आईये चलिए ऐसी धार्मिक और कठिन यात्रा पर जहाँ प्राणी सशरीर स्वर्ग जा सकता है 

अगले दिन सुबह सब जल्दी उठ कर यात्रा के लिए तैयार हो गए। धर्मशाला के पास ही हमने नाश्ते में परांठे खाये और दोपहर के लिए भी परांठे पैक करवा लिए। बद्रीविशाल को नमन कर के हम स्वर्ग जाने के रास्ते की तरफ चल दिए। वैसे तो ये यात्रा माणा गाँव से हो कर वसुधारा से धानु ग्लेशियर पार कर के होती है। लेकिन इस बार धानु ग्लेशियर बर्फ कम पड़ने की वजह से जल्दी ही फट गया जिस कारण उसे पार करना असंभव था। माणा गाँव से आगे भीमशिला को पार कर के एक कुलदेवी का मंदिर है जहाँ पर द्रोपदी अपनी स्वर्ग की यात्रा के समय लड़खड़ा कर गिर गई। गिरने पर भीम ने युधिष्टर से इस का कारण पूछा। तब युधिष्टर ने बताया द्रोपदी पाँचो पांडवो में सब से ज्यादा अर्जुन को चाहती थी। भेदभाव के भाव को ना त्याग पाने की वजह से द्रोपदी की ये हालत हुई। यही पर द्रोपदी ने अपना शरीर त्यागा था। 
मुझे इस यात्रा में एक डर लग रहा था वो ये, मैंने आज तक जितने भी ट्रेक किये हैं वो सब बिना बोझ के किये हैं, लेकिन इस ट्रेक को मैं 7-8 किलो के बैग के साथ कर रहा था। जिस कारण मन में शंका थी कही बैग के बोझ से मेरी यात्रा अधूरी ना रह जाये। 

बदीनाथ से सतोपंथ की यात्रा 25 कि.मी. के करीब है। आज हमने बद्रीनाथ से लष्मीवन (10 कि.मी.) तक जाना था। बद्रीनाथ से 2 कि.मी. जाने के बाद नाग नागिनी का छोटा सा मंदिर आता है। मंदिर में नमन कर हम आगे बढ़ गए। आगे बढ़ने पर  प्राकृतिक नज़ारे बढ़ते जा रहे थे। चारों तरफ सुंदरता ही सुंदरता नजर आ रही थी। बद्रीनाथ से 3 कि.मी. बाद माता मूर्ति का मंदिर है। माता मूर्ति भगवान् नर नारायण की माता है। कहते हैं यहाँ वर्ष में एक बार मेला लगता है और वामन द्वादशी के दिन भगवान् नर नारायण यहाँ पर अपनी माता का आश्रीवाद लेने आते हैं। हमने सबने यहाँ पर यात्रा पूरी होने का माता से आश्रीवाद लिया। आगे बढ़ने पर पगडण्डी शुरू हो गई। पगडण्डी बहुत ही छोटी है। सब एक दूसरे एक आगे पीछे चल रहे थे। हमारे बाई तरफ पहाड़ और दाईं तरफ नीचे अलकनंदा नदी का संगीत हमारी यात्रा के रोमांच को बढ़ा रहा था। 

प्राकृतिक नजारों और जबरदस्त चढाई का आनंद लेते हुए हम आनंद वन पहुँच गए। आनंद वन एक छोटा सा घास का मैदान है। यहाँ पर चल रही ठंडी हवा के झोंकों और मखमली घास पर आराम करके सच में आनंद आ गया। आनंद वन के आगे जबरदस्त ढलान उतर कर पगडण्डी खत्म होकर पत्थर शुरू हो जाते हैं और ग्लेश्यिर आ जाता है। ग्लेश्यिर के नीचे अलकनंदा का पानी पुरे वेग से चल रहा है जिसे देख डर लगता है। यहाँ आ कर रास्ता मुश्किल हो जाता है आपको हर पग ध्यान से देख कर रखना होता है। चट्टानों को पार कर ग्लेश्यिर को पार करना पड़ता है। 

ग्लेश्यिर को देख कर हम सब के मन में डर पैदा हो गया। क्योकि अगर ग्लेश्यिर पर चलते समय थोड़ी सी भी लापरवाही हुई तो आप फिसल कर सीधे अलकनंदा नदी में समा जाओगे। हम सब ने बड़ी सावधानी से उस ग्लेश्यिर को पार किया। ग्लेश्यिर पार करते ही 100 मीटर की चढाई चढ़ कर एक हरा भरा मैदान सा आ जाता है। हम सब ने उस मैदान में आराम किया। यहाँ पर हमें पता चला हमारे एक पोर्टर को बुखार है, हम ने उसे बुखार की गोली देकर वापिस भेज दिया। यहाँ से अलकनंदा के दूसरी तरफ सामने बसुधारा के दर्शन होते हैं। पहाड़ की चोटियों से बसुधारा का जल मोतियों की तरह दिखता है। हवा के वेग से बसुधारा का जल हवा में ही बिखर जाता है। इस बसुधारा के बारे में स्कंदपुराण कहा गया  है जो मनुष्य पाखंडी और पापी हो उस पर इस जलधारा का जल नही गिरता। 

इसके आगे चमटोली बुग्याल आता है। ज्यादातर लोग यही पर अपना कैंप लगते हैं। हमारे साथ चल रहे एक अन्य ग्रुप ने यही पर अपने टैण्ट लगाए थे। लेकिन हमारी मंज़िल लष्मीवन थी। आगे बढ़ते हुए अचानक बारिश शुरू हो गई। हम सब ने एक बहुत बड़े पत्थर के नीचे शरण ली। लगे हाथ हम सब ने अपने साथ लाये परांठो के साथ पार्टी की। बारिश के साथ एक बड़े से पत्थर के नीचे परांठो का लुत्फ सच कहूँ तो किसी बड़े होटल में भी नही मिल सकता। लष्मीवन पहुंचते ही बहुत बड़ा मैदान नजर आता है। लष्मीवन में आकर बहुत बड़े बड़े भोजपत्र के बृक्ष मिलते हैं। 

लष्मीवन की समुद्र तल से ऊंचाई 3650 मीटर है। इतनी ऊंचाई पर भोजपत्र के वृक्ष मिलना अचरज में डाल देता है। पुराने समय में ऋषि मुनि इन्ही भोजपत्र की छाल निकाल कर उनके ऊपर ग्रन्थ लिखते थे। जब पाँच पांडव स्वर्ग की ओर यात्रा कर रहे थे तो नकुल जी ने इसी जगह अपना शरीर त्याग दिया था। जब नकुल इस स्थान पर गिर गए थे तो भीम ने फिर युधिष्टर से इस का कारण पूछा तो युधिष्टर बोले नकुल को अपने रूप पर अभिमान था और इसी भाव को ना त्यागने के कारण उनकी ये गति हुई है। ज्यादातर यात्री स्वर्गरोहिणी यात्रा का पहला विश्राम यही करते हैं।  

जब तक हम वहाँ पहुँचे तो अमित भाई सब से पहले पहुँच कर टैण्ट लगा चुके थे। वहाँ पहुँच कर मैं तो घास पर ही लेट गया और थोड़ी देर के लिए झपकी ली। थोड़ी देर बाद हमारे बाकी के साथी भी आ गए। शाम को हमारे गाइड और पोर्टरों ने शाम के खाने की तैयारी शुरू कर दी। हमारी रसोई वहाँ पर मौजूद एक गुफा में थी। मै, जाट देवता, योगी भाई और विकास भोजपत्र के वृक्षों की तरफ चल दिए। हम काफी देर वहाँ पर प्रकृति का आनंद लेते रहे। बसुधारा यहाँ से अच्छे से दिख रही थी। जब दिन ढलने लगा और ठंडक बढ़ने लगी तब हम अपने टैण्टो की तरफ आ गए। रात के खाने से पहले हम ने सूप का आनंद लिया और दाल चावल खा कर अपने अपने स्लीपिंग बैग में घुस  गए। कुछ मित्र रात तक ताश खेलते रहे। मैंने, योगी भाई और विकास नारायण ने आज एक ही टैण्ट में रात गुजारी।   

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रास्ते के दृश्य 

नाग नागिनी मंदिर। 

रास्ते के दृश्य 

सामने लाल रंग में माता मूर्ति मंदिर 

खेतों के बीच में से रास्ता। 

संकरा रास्ता शुरू। 



आगे कमल भाई, मध्य संजीव भाई, पीछे योगी भाई। 

बीनू भाई रास्ता दिखते हुए। 

आनंद वन की तरफ बढ़ते हुए। 

आनंद वन में विश्राम करते हुए।  

पीछे ग्लेशियर 

आनंद वन से ग्लेशियर की तरफ 

जबरदस्त ढलान। 

पीछे जाट देवता जी रास्ता देखते हुए। 
ग्लेशियर पार करते हुए। 

ग्लेशियर पार करते हुए अगर फिसलते तो सीधा नीचे अलकनंदा में जाते। 

ग्लेशियर पार करके चैन की साँस लेते हुए। 

ग्लेशियर पार कर ऊपर चढ़ते ही हरा भरा घास का मैदान। 


दूर वसुधारा। 


वसुधारा और नीचे कैंप लगे हुए। 

बारिश में इसी पहाड़ के नीचे परांठों की पार्टी की। 
पराँठा पार्टी। 

लष्मीवन में गुफा में हमारी रसोई। 

भोजपत्र के वृक्ष। 





हमारे कैंप। 



हमारा रात का भोजन 

  

28 comments:

  1. बहुत बढ़िया भाई जी, बदरीनाथ और माणा गांव तक मैं भी गया हूं पर उसके आगे जाने या सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ, वैसे टेंट में रात गुजरना बहुत अच्छा लगता है

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    1. शुक्रिया सिन्हा जी। टैण्ट में एक दिन तो चल जाता है लेकिन जब लगातार 5 या 6 दिन गुजारने हों तब मुश्किल होती है।

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  2. बेहतरीन यात्रा लेख👌

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    1. शुक्रिय महेश जी।

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  3. बहुत ही उम्दा लेख

    अगले भाग का इंतज़ार रहेगा जी

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    1. शुक्रिया अक्षय भाई।

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  4. बहुत बढ़िया सुशील जी

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    1. शुक्रिया हर्षिता जी।

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  5. बहुत ही बढ़िया यात्रा विवरण है इस यात्रा पर ग्रुप वापस जाता है तो एक सदस्य में भी रहूंगा

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  6. बढ़िया और रोमांचक यात्रा विवरण

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  7. ट्रैकिंग पर टैंट में स्लीपिंग बैग में सोना सबसे ज्यादा परेशानी पैदा करता है।
    पूरी रात कैद होकर रहना पडता है। कम्बल या रजाई की बडी याद आती है।

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    1. सही कहा संदीप भाई आपने।

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    1. शुक्रिया भट्ट जी।

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  9. द्रौपदी और नकुल के प्राण त्यागने की बात जानकर अच्छा लगा....बढ़िया मजा आ रहा है पढ़ कर

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    1. शुक्रिया प्रतीक जी।

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  10. Badhiya
    Agla bhaag ki jankari bhi group me dijiyega

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    1. जरूर अनुराग जी।

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  11. बहुत सुंदर यात्रा वर्णन। मैं इस यात्रा के लिए घर से निकला भी और यह यात्रा कर भी नही सका। 😖

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  12. बढ़िया सुशील भाई ! पिछले साल की सब यादें ताज़ा हो गईं एक बार !! आनंदवन और ग्लेशियर पार करना बहुत कठिन था मेरे लिए , लेकिन सब हो गया !! जय बद्री विशाल

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    1. मेरे ख्याल में अमित भाई, बीनू, जाट देवता और सुमित के इलावा सब के लिए ये मुश्किल था।

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  13. बहुत बढिया कैलाशी जी।

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    1. शुक्रिया अनिल भाई।

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  16. Yes, this is a good post without any doubts. You really doing a great job. I inspired by you. So keep it up!! Kokan Darshan

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