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Saturday 8 August 2015

कैलाश मानसरोवर यात्रा ---नवाँ दिन--बुधी से गुंजी (छियालेख, गर्बियांग)

गुंजी की ऊँचाई 3160 मीटर
 
कुल रास्ता : - 19 कि.मी  पैदल 
समय      : -  7.30 घंटे 

बाकी दिनों की तरह सुबह 4.00 बजे नींद खुल गई। नित्यक्रिया से निवृत हो यात्रा में प्रस्थान के लिए तैयार हुआ। लगभग 5.30 बजे हम सभी ने शिव स्तुति एवं ‘ओम नमः शिवाय का उद्घोष कर सबने आगे की यात्रा के लिए प्रस्थान किया। बुधी से सामने के पर्वत-श्रंखला के साथ अन्नपूर्णा पर्वत और चोटी बड़े ही मनोहारी लग रहे थे।

पथरीली सीढ़ीदार चढ़ाई काफी जोखिम एवं थकाने वाली होती है। और हमे ऐसे ही 3 कि.मी. की चढ़ाई चढ़नी थी। खड़ी चढ़ाई समाप्त होने पर हम लोग छिया लेख के समतल घाटी में पहुच गए। छिया लेख 3350 मी. की उचाई पर है वहां पर हमने नाश्ता किया और चाय पी कर छियालेख के गहरे हरे मैदान को निहारते हुए आगे बढे। घाटी में आगे चेक पोस्ट था जहां पर हम लोगों का पासपोर्ट तथा पोनी पोर्टर का अनुमति पत्र चेक किया गया। अपने पासपोर्ट को दिखा कर, हस्ताक्षर करवा कर हम आगे बढ़ गये। छियालेख घाटी में विभिन्न रंगों के फुल  खिले हुए थे। रंग बिरंगे फूलों के कारण छियालेख को फूलों की घाटी भी कहते हैं।

मैं तेजी से छियालेख घाटी  को पार कर के एल.ओ साहिब से आगे निकला, तभी पीछे से हमारे एल.ओ साहिब ने मुझे आवाज दे कर कहा कहाँ भागे जा रहे हो सुशील, जल्दी पहुँच कर कोई अवार्ड नहीं मिलना प्रकृति को निहारते हुए आराम से जाओ। उन की बात को गाँठ बाँध लिया गया और आस पास के नज़ारे देखते हुए आराम से चला गया। 

यात्रा के 4 कि.मी के बाद पहाड़ी गांव गर्बियांग पहुंचे। जमीन में धंसता यह गांव, अपनी हस्ती को लगातार खो रहा है।  हालांकि, बीती दो सदी में भी कैलास—मानसरोवर के प्राचीन यात्रियों के लिए भी यह गांव बहुत महत्वपूर्ण रहा है। यहीं से वे आगे के सफर के लिए राशन जुटाते थे, पोर्टर का प्रबंध किया करते थे और घोड़े-खच्चरों का इंतज़ाम भी यह गाँव कर देता था। 

यहाँ के घरों के दरवाजे नक्काशीदार थे। बताया गया कि इस गांव से काफी लोग बाहर जाकर पढ़े लिखे हैं जिसमें से कुछ लोग भारतीय प्रशासकीय सेवा में भी है। आगे का रास्ता गार्बियांग बस्ती के बीच से हो कर जाता है। गार्बियांग को धसते हुए गावं के रूप में भी जाना जाता है।

गर्बियांग से गुंजी कैंप 12 कि.मी है। गांव के बाहर आईटीबीपी कैम्प है, जहां सभी यात्री पहुंच कर अपना-अपना पासपोर्ट पुनः चेक करवा रहे थे। इसी समय कैलाश मानसरोवर परिक्रमा पूर्ण कर यात्रियों का दल  (दूसरा दल)वापस वही पर आकर अपना-अपना पासपोर्ट चेक करवा रहे थे। उनसे यात्रा, कठिनाई, मौसम, स्वास्थ्य के बारे में हमारे समुह के यात्रीगण पूछताछ कर रहे थे।

आईटीबीपी कैम्प से आगे बढ़ने पर रास्ते में एक झोपड़ी नुमा एक होटल में दोपहर भोजन की व्यवस्था थी। सभी यात्री वहां पहुंचकर भोजन कर रहे थे। भोजन करने के बाद यात्री क्रमशः रवाना हो रहे थे। चारों और प्रकृतिक सौंदर्य फैला हुआ था। सभी यात्रिओ में प्रकृति के सौंदर्य हो कैमरे में भरने की होड़ से थी।

लगभग दोपहर 1.00 बजे गुंजी कैम्प के पूर्व  दो नदियों का संगम आया। थोड़ी दूर चलने पर सामने आदि कैलाश के दर्शन हो रहे थे। आदि कैलाश भारत में ही है। यहाँ भी लोग दर्शन हेतु और प्रकृति को निहारने जाते हैं। नदी उल्टी दिशा में बहती हुई साथ दे रही थी।नदी के उस पार आईटीबीपी का कैंप गुंजी स्पष्ट दिखाई दे रहा था। थोड़ी देर चलने पर गूंजी ग्राम आ गया और हम  नदी में बने पुल को पार कर  नदी के किनारे चलते हुए ऊपर चढ़ाई करते हुए समतल मैदान में पहुंचे जहा आईटीबीपी का कैम्प है। कैम्प के बाजू में ही कु.म.वि.नि. के द्वारा यात्रियों के लिए कैंप था। हम करीब 1 बजे पहुंचे थे।

गुंजी कैंप बहुत बड़ा है। इस के साथ ही I.T.B.P  का कैंप है। दोनों ओर ठहरने के लिए डोम बने है तो बीच में सुंदर क्यारियाँ। बहुत साफ़-स्वच्छ, हमारा कमरा फाइबर का डोम नहीं था, बल्कि टीन शेड वाला अच्छा-खासा कमरा था जिसके आगे पीछे बरांडे थे, एक पंक्ति में ऐसे ही कमरे थे जिसमें लकड़ी के छः तख्तों पर बिस्तर लगे हुए थे, सामने सब अर्धवृत्ताकर फ़ाइबर के शेड वाले डोम थे।

हमारे दल के जो यात्री पहले पहुँच गए थे वह सब आराम कर रहे थे। मैं भी वहां पहुँच कर बिस्तर पर लेट गया। 
आराम करने के बाद I .T .B .P  का कैंप में घूम कर आये।  गुंजी में जवानों ने एक छोटा सा मंदिर भी बना रखा है। शाम को कुछ यात्री मंदिर में भजन कीर्तन में शामिल होने चले गए।  मैं अपने कैंप में रहा। हमारे कैंप में फ़ोन की भी व्यवस्था थी, लेकिन यहाँ पर कॉल बहुत महंगी थी।  तभी कोचर जी ने मेरे को बताया तुम I.T.B.P के यहाँ से फ़ोन कर लो वहां कॉल बहुत ही सस्ती है। मैं और कोचर जी ने वहां जा कर घर फ़ोन किया।   

गुंजी पहुँचकर सभी यात्री रिलेक्स्ड महसूस रहे थे, क्योंकि कल भी पूरे दिन यहीं रुकना था। रात को भोजन-कक्ष में एल.ओ साहिब ने  सभी से अपनी-अपनी मेडिकल-जाँच रिपोर्ट की फ़ाइल(जो दिल्ली में अस्पताल से मिली थी) बाहर रखने और सुबह नाश्ता करके अपने अपने ग्रुपके साथ आई.टी.बी.पी. के प्रांगण में चलने के लिए तैयार रहने को कहा।  इस के बाद सब यात्री  खाना खाने लगे।  भोजन बहुत ही स्वादिष्ट था। सभी ने कु.म.वि.नि. के कर्मचारियों की प्रशंसा की और धन्यवाद दिया। सच में बहुत ही स्नेह और आदर  के साथ वे लोग खाना खिलाते और सेवा करते थे। हम हमेशा उनके आभारी रहेंगे।


इस यात्रा को आरम्भ से पढने के लिये यहाँ क्लिक करें।
 
   

गुंजी कैंप में एक छोटे से मंदिर के बाहर लगा भोले बाबा का त्रिशूल 
बुधी से चलते हुए सुबह के समय 


छियालेख तक ऐसा ही रास्ता है 


रास्ते के सुंदर दृश्य 



छियालेख में हमारे एल.ओ


छियालेख की सुन्दरता 



छियालेख घाटी को पार करते हुए 




मनोहर दृश्य 


गर्बियांग गाँव से गुजरते हुए 




सामने होटल में हमारे दोपहर के भोजन का प्रबन्ध था। 



दोपहर का भोजन करते हुए यात्रीगण 




दो नदियों का संगम 


नदी के दूसरी तरफ गुंजी कैंप का दृश्य 


आदि कैलाश ज़ूम कर  लिया गया फोटो 


दूर सामने आदि कैलाश के दर्शन 


गूंजी ग्राम के पुल को पर करते ही मनोरम दृश्य 



 

2 comments:

  1. गौमुख जैसा कच्चा पहाड यहाँ भी।

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  2. आदि कैलाश के दर्शन हो गए ! जय शिव शंकर !! नैसर्गिक सुंदरता ! जैसा संदीप जी ने कहा , कच्चे पहाड़ बहुत खतरनाक होते हैं !!

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