कहा जाता है जो यात्री सतोपंथ यात्रा को नंगे पैर करता है अर्थात एक पग नंगे पैर चलने से उसे एक अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है। नंगे पैर इस यात्रा को करने की मैं तो कल्पना भी नही कर सकता। लेकिन हमारे जाट देवता और बीनू भाई ने इस यात्रा को सैंडलों और चप्पलों से पूरी की थी। उसी के उल्ट हम सब ने महँगे ट्रैकिंग जूतों से इस यात्रा को पूरा किया। पहले दिन की यात्रा को इस यात्रा का सब से आसान भाग या आसान ट्रैक कह सकते हैं। यात्रा में असली परीक्षा तो अब शुरू होनी है। क्योकि अभी तक की यात्रा को हम ने पगडण्डी पर चल कर की है, लेकिन आगे की सारी यात्रा बोल्डर (पथरों के ऊपर) पर और बिना किसी पगडण्डी के करनी थी। जिसमे रास्ता भटकने का पूरा खतरा था।
आज हमारी मंजिल लष्मीवन से चक्रतीर्थ (10 कि.मी.) तक थी। सुबह हम सब ने आगे की यात्रा की शुरुआत बड़े ही जोश से शुरू की। सुबह सुबह सूर्य की किरणे पहाड़ों की चोटी पर ऐसे लग रही थी जैसे किसी विश्व सुंदरी के सिर पर सोने का ताज रख दिया गया हो। आगे चल कर सामने एक पहाड़ नजर आता है जहाँ से एक रास्ता अलकापुरी ग्लेश्यिर और दूसरा रास्ता बाई तरफ से सतोपंथ की तरफ जाता है। अलकापुरी ग्लेशियर से ही माता अलकनंदा का उगमन होता है। वैसे तो माता अलकनंदा स्वर्गरोहिणी के पास विष्णु कुंड से निकल कर अलकापुरी में दिखाई देती है। इसीलिए इसको विष्णुपदी गंगा भी कहते हैं।
यहाँ पर रास्ता भटकने के पुरे आसार है। हम में से कुछ जन रास्ता भटक कर ग्लेशियर की तरफ चले गए थे। लेकिन बीनू भाई ने हमे पीछे से आवाज लगा कर हमें वापिस मुड़ने को कहा। मैं और संजीव भाई आवाज सुनते ही वापिस हो गए। लेकिन हमारे दो साथी अभी भी ग्लेशियर की तरफ जा रहे थे। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए हमारा गाइड जल्दी से ग्लेशियर की तरफ गया इतने में बाकी साथी भी वापिस आ रहे थे। अगर आप गलती से ग्लेशियर की तरफ चले गए और भटक कर किसी क्रेवास में गिर गए तो आप की मृत्यु निश्चित है। तभी इस यात्रा के लिए गाइड का होना जरुरी है।
आगे का रास्ता पथरों या कही कही पगडंडी के ऊपर से चल कर चलना पड़ता है। आगे बढ़ने पर बाएं तरफ पहाड़ से एक बहुत ही खूबसूरत झरना बह रहा है। झरना पार करने के लिए पथरों के ऊपर से रास्ता ढूंढ़ना पड़ता है। थोड़ा सा आगे जाने पर बाई तरफ पहाड़ रूपी चट्टान नजर आती है जिस पर काफी सारे झरने एक ही कतार में नजर आते हैं। यहाँ का दृश्य मंत्रमुग्ध करने वाला है। एक साथ इतने सारे झरने देख कर यात्री सारी थकावट को भूल ही जाते हैं और ये दृश्य प्रभु की माया का एहसास होता है। ऐसा दृश्य मैंने अपने पूरे जीवन में अभी तक नहीं देखा। ऐसा लग रहा था जैसे मैं धरती पर नही किसी स्वर्ग लोक में हूँ। इस स्थान को सहस्त्रधारा के नाम से जाना जाता है। पाँच पांडवों में से सहदेव इस स्थान तक ही पहुँच सका था और सहस्त्रधारा के पास ही सहदेव ने अपना शरीर छोड़ दिया था। भीम ने युधिष्टर से सहदेव के देह त्यागने का कारण पूछा तब युधिष्ठिर ने बताया कि सहदेव किसी को भी अपने जैसा बिद्वान नही समझता था और इसी भाव का त्याग ना करने के कारण उसे मृत्यु प्राप्त हुई। कहते है इस यात्रा में यात्रियों को स्वान जरूर मिलते हैं जो आपके साथ चलते हैं और यात्रिओं को सतोपंथ तक ले कर जाते हैं। कहते हैं जब पाँच पांडव स्वर्ग के रास्ते जा रहे थे तो उन्हें भी एक स्वान मिला था। जो कि युधिष्ठिर की परीक्षा लेने के लिए स्वयं धर्मराज ने स्वान का भेष ले रखा था। लेकिन हमें जाते हुए तो नहीं लेकिन वापिसी में स्वान के दर्शन जरूर हुए थे।
सहस्त्रधारा के इस मैदान में धाराओं के कारण पानी का तालाब बन गया था। हम सब थके होने के कारण वहाँ स्नान करने का निश्चय किया। लेकिन पानी बहुत ही ठंडा था जिसके कारण सब ने नहाने से मना कर दिया। सिर्फ संजीव त्यागी जी उस पानी में नहाये। सहस्त्रधारा को पार करके एक तलवारनुमा पहाड़ी पर चलना पड़ता है। जिसके एक तरफ खाई और दूसरी तरफ ग्लेशियर है। आगे हमें नीलकंठ पर्वत के दर्शन होते हैं। हम नीलकंठ पर्वत के बिलकुल पीछे हैं। आगे चल कर नीचे उतर कर मैदानी जगह आती है। ये जगह अपने आप में ही निराली है। इस मैदानी इलाके में पानी की जल धाराएं बह रही हैं। हम सब ने यहाँ पर कुछ समय व्यतीत किया। थोड़ी दुरी पर रास्ते में हमारे पोर्टरों ने दोपहर का भोजन मैगी तैयार कर दी। जैसे जैसे हम उन तक पहुँच रहे थे तो वो हमें मैगी देते जा रहे थे।
सहस्त्रधारा के तीन कि.मी. के बाद आता है चक्रतीर्थ। चक्रतीर्थ एक बहुत बड़ा मैदान है जो कटोरे के समान गोलाकार है। पाँच पाँडवों में वीर अर्जुन चक्रतीर्थ तक ही आ सका था। इसी जगह पर अर्जुन ने अपना शरीर त्याग दिया था। भीम के पूछने पर युधिष्ठिर ने अर्जुन की मृत्यु का कारण अपने पराक्रम पर अभिमान के भाव को ना त्यागने का बताया। इसके आगे भीम, युधिष्ठिर और स्वान के रूप में धर्मराज गए थे। चक्रतीर्थ में कई गुफायें भी हैं। ज्यादातर यात्री यही पर रात्रि विश्राम करते हैं।
हम दोपहर को 2 बजे के करीब चक्रतीर्थ पहुँच गए थे। चक्रतीर्थ समुंद्र तल से 4100 मी. की ऊंचाई पर स्थित है। हमारे पहुँचने से पहले ही अमित भाई ने दो गुफाओं के पास ही टैंट लगा लिए थे। एक गुफा में हमारी रसोई और दूसरी गुफा में जाट देवता और सुमित भाई ने अपना सोने का इंतजाम किया था। बाकि सब अपने अपने टेंटों में चले गए। शाम को हम सब ने गरमा गर्म चाय पी कर थकावट को दूर किया।
शाम को एक और घटना विकास भाई के साथ हुई। आराम करते हुए किसी बात पर विकास भाई और संजीव त्यागी जी के बीच कुछ अनबन हो गई। जिसके कारण बीनू भाई ने विकास को डांट दिया। इन बातों से नाराज हो कर विकास अकेला ही वापिसी वाले रास्ते की तरफ चला गया। हम सब ने सोचा वो थोड़ी देर में आ जाएगा। जब एक घंटे बाद वो नहीं आया तब हम सब को चिंता होने लगी। आधे घंटे बाद बूंदाबादी शुरू हो गई। हम सब किसी अनहोनी की आशंका से घबराने लगे। हम सोच रहे थे अगर वो वापिस लष्मीवन की तरफ जा रहा है तो वो वहाँ तक पहुँच नहीं पाएंगे। हम सब गज्जू गाइड को उसको ढूंढ़ने के लिए भेजने वाले थे। तभी हमे वो दूर से आता दिखाई दिया। हम सब की जान में जान आ गयी। इतनी ऊंचाई पर आप के शरीर में काफी बदलाव देखने को मिलते हैं। आप की भूख कम हो जाती है, रात को नींद नहीं आती, चिड़चिड़ा होना, सिर दर्द होना शुरू हो जाता है। हम सब को इन बदलावों का सामना करना पड़ रहा था। रात को हम सब को भी ऊंचाई के कारण नींद आने में दिक्कत हुई थी।
इन मुश्किलों के इलावा एक और मुश्किल ने हम सब में घबराहट पैदा की हुई थी। वो ये, चक्रतीर्थ के सामने ऊंचाई पर एक पहाड़ी धार थी जिस तक हमें सुबह पहुँचना था। मुश्किल ये थी जब हम उस धार की तरफ देख रहे थे तो हमें अपने सिर को बिलकुल ऊपर की तरफ करना पड़ रहा था। जिस से उस धार की ऊंचाई का अंदाजा हो रहा था और उस ऊंचाई को देख कर हम सब के मन में डर पैदा हो रहा था। चलो उस धार के बारे में अगली पोस्ट में बताऊंगा।
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चोटी पर सूर्य की किरणे। |
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सुबह लष्मीवन से निकलते हुए। |
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बोल्डर इलाका शुरू। |
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इसी गलत रास्ते की तरफ चले गए थे। |
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सही रास्ता ये है बाईं तरफ से। |
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रास्ते के सुंदर दृश्य |
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जाट देवता जी का स्टाइल और सैंडलों से यात्रा करते हुए। |
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खूबसूरत झरना। |
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दूर सहस्त्रधारा। |
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धार पर चलते हुए। |
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बाईं तरफ सहस्त्रधारा, बीच में धार और दाईं तरफ ग्लेशियर। |
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सहस्त्रधारा |
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इन्ही निशनों को देख कर रास्ते का पता चलता है। |
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सामने कटोरे के आकार में चक्रतीर्थ |
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जाट देवता और सुमित नौटियाल का आज का विश्राम स्थल। |
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हमारी आज की रसोई। |
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हमारे टेंट। |