सुबह जल्दी ही घर से निकल गया और गुजरात समाज भवन पहुंच गया। बाहर बस खड़ी थी। सभी यात्री बस में बैठे गए। बस चल पड़ी। सभी यात्री प्रफुल्लित और उत्साहित थे। उच्च-स्वर में 'ओम नमःशिवाय’ का उदघोष कर रहे थे। बस सड़कों पर दौड़ती हुई विदेश मंत्रालय पहुँच गई। सभी यात्रियों की क़तार बनाकर, नाम पुकारकर और लिस्ट से मिलाकर हॉल में पहुँचाया गया।
विदेश-मंत्रालय और कुमाऊं-मंडल के आधिकारी वहाँ पहले से ही उपस्थित थे। हमारे एल.ओ. साहब भी हॉल में थे। कुमाऊ-मंडल और आईटीबीपी के अधिकारियों ने यात्रा की ब्रीफिंग की, साथ-साथ यात्रा संबंधी कठिनाइयों की जानकरी दी। वही पर हम सब यात्रियों के इन्डेंमनिटी बोंड और फॉर्म इत्यादि भरवाए गए और शेष रकम 27000 रुपए भी लिए गए और रसीदें दीं। मैंने शेष राशि का ड्राफ्ट पटियाला से बनवा लिया था। सभी के पासपोर्ट वापिस किए ताकि लोग डालर खरीद सकें। मैंने तो डॉलर पटियाला से ही खरीद लिए थे। काफी यात्री वही से डॉलर खरीद रहे थे। वही पर किसी बैंक का कर्मचारी आ गया था और जिस ने भी डॉलर लेने थे उस को अपना नाम और जितने डॉलर लेने थे, उस को लिखवा रहे थे।
एक बजे के करीब सब फ्री हो गए। मैं बस से गुजरात समाज भवन ना जा कर मेट्रो से सीधा घर जाने का निश्चिय किया क्योंकि शाम को गुजरात समाज भवन में भजन संध्या थी। विदेश मंत्रालय के भवन से निकल कर सीधा पास के मेट्रो स्टेशन पहुंचा तो वहां जा कर पता लगा कि मेट्रो स्टेशन किसी कारण बंद था। मैं फिर से विदेश मंत्रालय के भवन पंहुचा लेकिन तब तक हमारी बस जा चुकी थी। अचानक वहां पर हमारे बैच से नीलम जी और अंजू जी वहां अपनी गाडी के पास खड़े थे। मैंने उन्हें रिक्वेस्ट की वे मुझे अगले मेट्रो स्टेशन तक छोड़ दें। उन्होंने मुझे गाडी में बिठाया और अगले मेट्रो स्टेशन तक छोड़ दिया। इस ले पहले मेरी उन से बोल चाल नहीं थी। लेकिन इस यात्रा में मेरी इनसे बहुत अच्छी बनी। अब मेट्रो पकड़ सीधा घर गया और सामान पैकिंग में लग गया। आज ही पटियाला से मेरी मम्मी भी आ गए थे। मेरी वाइफ 2 दिन पहले आ गई थी।
भजन-संध्या
उसी दिन शाम दिल्ली-सरकार की ओर से गुजराती-समाज में यात्रियों का विदाई-समारोह और भजन-संध्या का आयोजन था। सब काम करके हम नहा धोकर मैं अपनी बहन -जीजा जी , मम्मी , वाइफ के साथ भजन संध्या में पहुँच गए। दिल्ली सरकार की तीर्थ-यात्रा विकास समिति के चैयरमैन श्री उदयकौशिक जी सामने स्टेज पर उपस्थित थे। दायीं ओर एक मेज पर भगवान गौरी-शंकर की मूर्ति विराजमान थीं जिन पर पुष्प-मालाएँ सुशोभित हो रहीं थीं। लोग बारी-बारी से आकर मूर्तियों पर तिलक लगा रहे थे और पुष्प समर्पित कर रहे थे। बायीं ओर एक बड़ी चौकी पर भजन गायक भक्ति रस फैला रहे थे। लोग मगन होकर तालियाँ बजा रहे थे, झूम रहे थे और नाच रहे थे। बहुत सुंदर समां बांधा गया था।
कुछ देर में हमारे एल.ओ. आ गए और उदयकौशिक जी के बराबर मंच पर बैठ गए। कुछ संबोधन और भाषण हुए। भगवान शंकर की आरती हुई। इसके बाद सभी यात्रियों का दिल्ली सरकार की ओर से स्वागत किया गया। सभी को फूलमाला पहनायी गयीं। एक ट्रैक-सूट, एक बरसाती सूट और एक ट्रैवल-बैग (रकसक) जिसमें एक टार्च और एक डिब्बे में पूजा का सामान था भेंट किया गया। दिल्ली-सरकार अपने राज्य से जाने वाले प्रत्येक कैलाश-मनसरोवर यात्री को पच्चीस हजार रुपया सब्सिडी भी देती है।
अब बारी थी भोजन की। सभी ने स्वादिष्ट भोजन का आनंद लिया। चूंकि लगभग यात्रीगण वहीं ऊपर रुके हुए थे सो कुछ-कुछ करके लोग जाते जा रहे थे। सुबह मुझे साढ़े चार बजे तक पहुँचना था। क्योंकि सभी के लगेज वाला ट्रक पहले ही रवाना हो जाता है इसलिए थोड़ा जल्दी पहुँचना था।
अगली पोस्ट में दिल्ली से प्रस्थान होगा। …
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दिनेश बंसल जी के साथ |
श्रीमति जी भी विदा करने आ गयी। माताजी का आशीर्वाद भी मिला।
ReplyDeleteपढ़ने वाले को ऐसा लग रहा है जैसे वो स्वयं यात्रा कर रहा है ! जय भोले बाबा की
ReplyDeleteयोगी जी बहुत बहुत शुक्रिया साथ साथ यात्रा करने के लिए
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