धारचूला के बारे में
धारचूला एक सुंदर शहर है जो उत्तराखंड राज्य के पिथौरागढ़ जिले में भारत - नेपाल सीमा पर स्थित है। इस जगह का नाम हिन्दी भाषा के दो शब्दों धार और चूला से मिलकर बना हुआ है जिनका अर्थ होता है धार यानि चोटी और चूला यानि स्टोव। यह शहर एक पहाड़ी क्षेत्र है जिसका आकार स्टोव के जैसा दिखता है इसीकारण इस शहर को धारचूला कहते हैं। यह शहर पिथौरागढ़ से 90 किमी. की दूरी पर स्थित है जो पहाड़ों से घिरा हुआ है। इस शहर के पश्चिम में बर्फ से ढ़की पश्चिमचुली चोटी स्थित है जो इस क्षेत्र को जौहर घाटी से अलग करती है।
सुबह जल्दी आँख खुल गई। सामान तो रात को ही पैक कर के सोए थे। स्नान आदि से निवृत्त होकर फोटो सेशन किया गया। इस के बाद नीचे लगेज पंहुचा दिया गया। सभी ने अपना-अपना लगेज काऊंटर के पास ला दिए जिसे वहां पर हमारे सहयात्री उत्कल जी ( जो कि गुजरात से हैं।) ने सभी लगेज का वजन करवाया और गिनती कर कुमाऊ मण्डल विकास निगम के अधिकारी/कर्मचारी के हवाले किया गया। नाश्ता शुरु हो गया था सभी ने दिल्ली में मिले अपने-अपने बेंत ले लिए और मार्कर से अपना-अपना नाम लिख लिया।
जब हम गेस्ट हाउस से बाहर आये तो देखा आगे के सफर के लिए जीप खड़ी हैं। साढ़े सात बजे के करीब यात्रीगण शंभु स्तुति के बाद जीप में जा कर बैठ गए। जीप से हमें धारचूला से नारायण आश्रम जाना थे, वहां से पैदल रास्ता शुरु होता है धारचूला इस यात्रा में आखिरी बड़ा शहर है।
काली नदी के किनारे पहाड़ी रास्ते पर जीप चल रही थी। कुछ ही देर में शरीर की अच्छी कसरत हो गयी थी। आधे घंटे बाद हमारी जीप रुक गई पता लगा आगे रास्ते में एक ट्रक ख़राब है। हम सब यात्री वही टहलने लगे। जहाँ हम रुके थे वहां NHPC द्धारा डैम बनाया जा रहा था। सभी यात्री एक दूसरे से बातें करने लगे और कुछ फोटो खीचने में लग गए। लगभग आधे घंटे बाद हम वहां से चल पड़े। 11 बजे के करीब हम लोग नारायण आश्रम पहुंचे, यहाँ पर ड्रा दवारा पोनी एवं पोर्टर का अलॉटमेंट किया गया, एक बार फिर से उत्कल जी ने सभी सभी यात्रियों को पोनी और पोर्टर करने में सहायता की। अभी भी मुझे समझ नहीं आ रहा था। कि मैं पोनी पोर्टर करू या ना करू। आखिर मैंने सिर्फ पोर्टर करने का निश्चिय किया। मुझे पोर्टर का नाम याद नहीं आ रहा इस लिए अभी मैं उस का नाम राजिंदर ( नकली नाम ) लिख रहा हु। मैंने अपना पोर्टर किया और अपना बैग उसे दे कर सीढ़ियां चढ़ कर नारायण आश्रम पहुँच गए।
नारायण आश्रम के बारे
नारायण आश्रम की स्थापना 1936 में नारायण स्वामी ने की थी। जो समुद्र तल से 2734 मीटर की ऊंचाई पर है। यह आश्रम एक धार्मिक स्थान है। यहां स्थानीय बच्चे शिक्षा प्राप्त करने के लिए भी आते हैं। इसके साथ ही नारायण आश्रम स्थानीय निवासियों की सामाजिक-आर्थिक गतिविधियों में भी मदद करता है। यह आश्रम बहुत ही खूबसूरत है और आश्रम के चारों ओर रंग-बिरंगे फूल इसकी खूबसूरती को ओर अधिक बढ़ाते हैं। आश्रम का वातावरण बहुत ही शान्तिपूर्ण है। इसके अलावा आश्रम में यात्रियों एवं पर्यटकों के लिए मेडिटेशन रूम और समाधि स्थल की सुविधा भी उपलब्ध है। प्रत्येक वर्ष इस आश्रम में काफी संख्या में विदेशी पर्यटक घूमने के लिए यहां आया करते हैं। आश्रम भारी बर्फबारी की वजह से सर्दियों के दौरान बंद रहता है।
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भगवान नारायण जी की मनमोहक मूर्ति |
यहाँ पर भगवान नारायण जी की बहुत ही सुन्दर मनमोहक मूर्ति है। हम सभी यात्रियों ने दर्शन किये। यहाँ पर मंदिर में Hyma जी हमारी सहयात्री ने (जो U.S.A से हैं ) बहुत ही सुन्दर भजन गाया। प्रसाद ग्रहण के बाद शिव जयकारे से साथ चलना शुरु किया आज हमें सिर्फ 6 KM चलना था। नारायण आश्रम से बाहर आते ही थोड़ा सा पैदल चलने पर जो नजारा दिखा सचमुच मन को मोह लेने वाला था। वैसे भी दो दिन बस मे बैठे बैठे शरीर अकड़ गया था। ऐसा सुन्दर रास्ता देख कर मन में सोचा अब आएगा मजा चलने में । रास्ता ज़्यादा कठिन नहीं था क्योंकि आज हमें सिरखा तक जाना था। जोकि 2235 mtr की ऊंचाई पर है और नारायण आश्रम 2700 mtr पर। मतलब हमें ज्यादातर उतराई ही मिलनी थी। हम सभी यात्री रास्ते में बच्चो को टॉफियां बाँटते हुए और रास्ते का आनंद लेते हुए सिरखा कैंप पहुँच गए। सिरखा गाँव, रास्ते में पड़ने वाला पहला, सुन्दर और छोटा सा गाँव है। यहाँ का मुख्य व्यवसाय कृषि है। यहाँ पर 80 के करीब घर हैं और यहाँ की आबादी 300 -350 के करीब है।
मैं लगभग चार बजे कैंप पहुँच गया। कैंप पहुचने हमारा स्वागत शरबत से हुआ। हमारे कैंप के सामने P.W.D का गेस्ट हाउस था जहाँ हमारे एल.ओ साहिब के रुकने का इंतजाम था। शाम को मैं कोचर जी के साथ गाँव मे जा कर PCO से घर बात की। धारचूला के आगे पूरे रास्ते कोई मोबाइल नेटवर्क नहीं है। रास्ते में सभी गेस्ट हाउस में PCO की सुविधा उपलब्ध है जो की सॅटॅलाइट के जरिये कनेक्ट होते है।
वापस आ कर सूप पिया और जेनेरेटर शुरु होते ही कैंप में लाइट जगमगने लगी, लाइट आते ही सभी ने मोबाइल, कैमरा चार्जिंग में लगा दिए, शाम को भजन संध्या का दौर चला और खाना खा कर हम लोग सोने चले गए।
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Yatra ka bahut maja aa raha hai
ReplyDeletepics are soooo beautiful. ..........
Aap ne jo ghar ki pic lagai hai bht badiya hai, bss thori c ktt gai hai
ReplyDeleteThanks satvinder ji for your comments
ReplyDeleteHar Har Mahadev
ReplyDeleteपैदल यात्रा का सुख।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर जगह ! प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर नज़ारे !!
ReplyDeleteयहां तक 6 भाग पढ़ लिए सुशील भाई पर अब आगे ।का कैसे पढ़े कोई लिंक नजर नहीं ।आरहा है
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