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Saturday 26 August 2017

पांडवों की धरती से स्वर्ग की ओर यात्रा - स्वर्गरोहिणी सतोपंथ यात्रा - 1


स्वर्गरोहिणी - सतोपंथ यात्रा एक ऐसी दुर्गम यात्रा, जिसे पांडवों ने अपने अंतिम समय में किया था। महाभारत में पांडवो की एक महान यात्रा अर्थात मोक्ष की यात्रा का जिक्र है। कहते हैं महृषि वेदव्यास जी के कहने पर पाँचो पांडवो ने राजपाट छोड़ने के बाद द्रोपदी के साथ परलोक जाने का निश्चिय किया और साधु वस्त्र पहन उन्होंने स्वर्ग के लिए प्रस्थान किया। भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव व द्रोपदी तो स्वर्गरोहिणी पहुँचने से पहले ही मृत्यु को प्राप्त हो गए। लेकिन धर्मराज युधिष्टर ने एक श्वान के साथ पुष्पक विमान से सशरीर स्वर्ग के लिए प्रस्थान किया। धरती पर अगर स्वर्ग की अनुभूति करनी हो तो बद्रीनाथ धाम के आगे स्वर्गरोहिणी चले जाएँ। 

इस यात्रा को  मैंने 7-8 साल पहले एक cd में देखा था। इस यात्रा को cd पर मैंने कम से कम 10 बार देखा था। हर बार इस यात्रा को देख कर मैं रोमांचित हो जाता था। लेकिन कभी यहाँ जाने का प्रोग्राम नही बना, लेकिन मन में था कि इस जगह जाना जरूर है। जून 2016 में मेरा और रमेश जी का बाइक पर लेह लदाख जाने का प्रोग्राम बना। जिसके लिए मैंने और रमेश जी (घुमक्कड़ ग्रुप के सदस्य) ने पूरी तैयारी कर ली थी, लेकिन किसी कारणवश मेरा लेह जाने का प्रोग्राम कैंसिल हो गया। दूसरी तरफ हम घुमक्कड़ों का एक और ग्रुप 'मुसाफिरनामा' में बीनू भाई स्वर्गरोहिणी सतोपंत का प्लान बना रहे थे। लेह का प्रोग्राम कैंसिल होने के बाद मन सतोपंत यात्रा की तरफ जाने लगा। मैंने रमेश जी से सतोपंत यात्रा पर चलने की बात की और बीनू भाई को अपने चलने का बोल दिया। ग्रुप का प्लान 11.06.2016 को हरिद्वार से बद्रीनाथ जाने का था और ग्रुप के सभी साथी हरिद्वार में अपने अपने हिसाब से आने वाले थे। मैंने हरिद्वार दो दिन पहले पहुँचने का निर्णय लिया। क्योकि  मैं दो दिन गंगा किनारे आराम से बिताना चाहता था। बीनू भाई को मैंने अपना कार्यक्रम बता दिया। बीनू भाई ने कहा, ठीक है तुम वहां जा कर बस की टिकट बुक कर देना सब के लिए।  

09.06.2016 को मै सुबह ट्रैन से हरिद्वार के लिए रवाना हो गया। दोपहर को मै हरिद्वार पहुँच गया। हरिद्वार पहुँचते ही मैं GMOU (गढ़वाल मोटर ओनर यूनियन) के ऑफिस जो हरिद्वार बस स्टैंड के बिलकुल साथ मे हैं पहुँच गया, बस की टिकट बुक करवाने के लिए। जून के महीने में चार धाम और हेमकुंड साहिब की यात्रा होने के कारण काफी भीड़ रहती है। मौके पर बस की टिकट नही मिलती। जिस किसी भाई ने बद्रीनाथ बस में जाना हो तो उसे पहले से ही बुकिंग करवा लेनी चाहिए। ऑफिस पहुँच कर मैंने 10 टिकट बस की 11 तारीख की बुक करवा दी और रिसीप्ट की कॉपी व्हाट्सअप पर ग्रुप में भेज दी। अब अगला काम मुझे समभाव आश्रम जाना था, जो हर की पौड़ी से 2 कि.मी. ऋषिकेश वाली सड़क पर था। मेरे भाई के दोस्त के गुरु जी का वो आश्रम था, जिस में एक कमरा मेरे लिए बुक कर दिया था उन्होंने। बस स्टैंड से अपना बैग उठा मैं पैदल ही हर की पौड़ी की तरफ चल दिया। हर की पौड़ी से ऑटो ले कर मैं आश्रम पहुँच गया। आश्रम पहुँच कर थोड़ी देर आराम किया गया। 1 घंटे सोने के बाद अपने आप को तरोताजा महसूस किया। तभी हमारे व्हाट्सअप ग्रुप 'घुमक्कड़ी दिल से' के एक सदस्य पंकज जी जो हरिद्वार में ही रहते हैं उन का फ़ोन आया और वो मेरे पास आश्रम में  मिलने आ गए। पंकज भाई एक जिंदादिल और खुशदिल इंसान हैं। जब वो आये तो बातें करते हुए टाइम का पता ही नहीं चला और ना ही ऐसा महसूस हुआ कि हम पहली बार मिल रहे हैं। 

अगले दिन रमेश जी हरिद्वार पहुँचने वाले थे। सुबह मैं तैयार हो कर हर की पौड़ी की तरफ पैदल ही निकल गया। रमेश जी मुझे हर की पौड़ी पर मिल गए वही हम ने गंगा जी में स्नान किया और वापिस आश्रम में आ गए। वापिस आश्रम में आ कर आराम कर के हमने ऋषिकेश का प्रोग्राम बनाया। बस से हम ऋषिकेश पहुँच गए और वहाँ जा कर हम ने परमार्थ आश्रम की गंगा जी की आरती का आनंद लिया। परमार्थ आश्रम की आरती मुझे हमेशा से ही आनंद प्रदान करती है। अगले दिन हमारी बस को आश्रम की तरफ से सुबह 4.30 बजे निकलना था। मैंने और रमेश जी सुबह जल्दी से उठ कर सड़क पर आ कर खड़े हो गए और बस का इन्तजार करने लगे। कुछ देर बाद हमारी बस आ गई मैं और रमेश जी बस में चढ़ गए। पहली 10 सीटें हमारी बुक थी। बस में हम ने सब साथियों से परिचय किया। मैं पहली बार व्हाट्सअप ग्रुप के घुमक्कड़ सदस्यों से मिल रहा था। हालांकि बस में बैठ कर सभी से अच्छे से जान पहचान नहीं हो पाई। बीनू भाई और संदीप भाई (जाट देवता) दूसरी बस से आ रहे थे। क्योंकि दो नए साथी दिल्ली से जुड़ चुके थे। 

बस चले अभी 3 घंटे ही हुए थे तभी मुझे अपनी एक गलती का एहसास हुआ वो गलती थी उल्टी की दवाई ना लेना। अब गलती की थी सजा तो भुगतनी ही थी। इस की सजा ये मिली 12 घंटे के सफर में मैंने कुछ भी खाया पिया नहीं और उल्टियां की कम से कम 7-8 बार। बदीरनाथ पहुँच कर ठंडक का जबरदस्त एहसास हुआ। हमने पास ही बरेली बालों की धर्मशाला में दो कमरे बुक किये। धर्मशाला के पास ही सरकारी डोरमेंट्री भी है जहाँ 110 रुपए में रहने का जुगाड़ हो जाता है। सभी अपने हिसाब से आराम करने लगे। आराम करने के बाद मैं होटल के बाहर आ गया तभी मुझे बस स्टैंड पर संदीप भाई (जाट देवता) वहाँ नजर आये। मैं बड़ी गर्मजोशी से उनसे मिला। क्योंकि ट्रैकिंग में वो मेरे आइडियल हैं। उन्हें होटल के कमरे में लेकर आ गया। बीनू भाई श्रीनगर उतर कर अपने मित्र के साथ बाइक पर आ रहे थे। 

सहयात्रियों के बारे में जानकारी 

अमित तिवारी जी = जबरदस्त ट्रेक्कर, पहाड़ों के जानकार, यात्रा को  बहुत अच्छे से  ढंग से संगठित किया था। ग्रुप का नेतृत्व इन्होंने ही किया था।
बीनू भाई = जबरदस्त ट्रेक्कर, ब्लॉगर, यात्रा में सब का ध्यान रखने वाला, पहाड़ों से जबरदस्त प्रेम। मूल रूप से उत्तराखंड से हैं। आज कल दिल्ली में रहते हैं।
सचिन त्यागी = सचिन जी अच्छे साथी, ब्लॉगर और हमेशा हौंसला अफजाई करते रहते हैं।
संदीप पंवार = संदीप पंवार (जाट देवता) के बारे में जितना लिखा जाये कम है। एक बहुत ही जबरदस्त ट्रेक्कर, बहुत बड़े घुमक्कड़, ब्लॉगर, यात्रा में सब का ख्याल रखने वाले।
कमल कुमार = कमल भाई जबरदस्त लिखते हैं, इनके आर्टिकल पेपर में आते रहते हैं। एक अच्छे मित्र।
योगी सारस्वत  =  योगी भाई अच्छे मित्र, कई भाषाओ के ज्ञानी, ब्लॉगर। 
रमेश जी  = 52 साल की उम्र में भी जबरदस्त उत्साह, हौंसले वाले।
विकास नारायण = ग्वालियर से, अच्छा मित्र, थोड़ी सी परिपक्वता की कमी।
सुमित नौटियाल = जबरदस्त ट्रेक्कर, अच्छे मित्र।
संजीव त्यागी = दिल्ही में रहते हैं और अच्छे मित्र।

इतने अनुभवी मित्रों का साथ पा कर मुझे बहुत ही गर्व महसूस हो रहा था यात्रा के साथ साथ सभी साथियों से बहुत कुछ सिखने को भी मिलना था ये बात तो तय थी।

अगले दिन सब लोग आराम से उठे। सतोपंत यात्रा शुरू करने से पहले हम ने एक छोटा सा ट्रेक चरण पादुका तक या उससे 2 कि.मी. आगे तक का करना था। सुबह पहले बद्री विशाल के दर्शन से पहले हमने मंदिर के पास गर्म पानी में स्नान किया। उस समय बद्री विशाल के मंदिर बहुत ज्यादा भीड़ थी। कुछ सहयात्री नाश्ता करने लग गए। नाश्ता कर हम बाहर से बद्री विशाल को प्रणाम कर मंदिर से बाई तरफ से चरण पादुका की तरफ चल पड़े। चलते ही जाट देवता जी को गर्म गर्म जलेबी बनती दिखी जिसे देख कर वो उसे खाने से नही रोक सके। चरण पादुका मंदिर से 2 कि.मी. की दुरी पर है और नील कंठ बेस 8 कि.मी. की दुरी पर है। चरण पादुका के रस्ते मे हनुमान जी का एक मंदिर आता है। हम सब ने उस मंदिर में आश्रीवाद लिया और आगे चरण पादुका के लिए बढ़ गए। कुछ देर बाद हम सब चरण पादुका पहुँच गए और वहाँ बैठ गए। चरण पादुका में एक छोटी सी गुफा है। हम सभी साथी वही बैठे हुए थे तभी गुफा के अंदर से एक आदमी (शायद वहाँ का पुजारी था) हम पर चिल्लाता हुआ आया। वो किस बात पर भड़का हुआ था पता नहीं लगा। शायद हम सब से वो दक्षिणा की उम्मीद कर रहा था जो उसे हम से नही मिली। वहीँ पर एक अंग्रेज हमारे शोरगुल से बेफिक्र भक्ति में लीन था। जब हमने उसकी फोटो लेनी शुरू की तो उसने अपने मुँह को ढक लिया।

पौराणिक कथाओं के अनुसार यहाँ नीलकंठ पर्वत के समीप भगवान विष्णु ने बाल रूप में अवतरण किया। यह स्थान पहले शिव भूमि के रूप में व्यवस्थित था। भगवान विष्णु जी अपने ध्यानयोग के लिए स्थान खोज रहे थे। उन्हें अलकनंदा के समीप यह स्थान बहुत ही अच्छा लगा। उन्होंने चरणपादुका के पास बाल रूप में अवतरण किया और रोने लगे। उनके रोने की आवाज सुन कर माता पार्वती जी का ह्रदय द्रवित हो गया। भगवान शिव और माता पार्वती बालक के पास आये और पूछा तुम्हे क्या चाहिए? तो बालक ने ध्यानयोग के लिए यह स्थान मांग लिया। यही पवित्र स्थान आज बद्रीविशाल के नाम से प्रसिद्ध है।

खैर हम इस वाकये को भुला कर आगे नीलकंठ बेस कैंप तक बढ़ने लगे। हमारा प्रोग्राम नीलकंठ बेस कैंप का नही था। हमने सोच रखा था जहाँ तक जा सके जायेगें। यही से हमारे तीन साथी योगी जी, अमित भाई, कमल भाई नदी के दूसरी तरफ से ऊपर की तरफ चलने लगे। मैं और विकास आगे चल रहे थे। संदीप भाई रमेश जी को साथ ले कर धीरे धीरे आ रहे थे। संदीप भाई की ये बात मुझे बहुत अच्छी लगी वो रमेश जी के साथ साथ और उन्हें हौंसला देते हुए चल रहे थे। जैसे जैसे हम आगे बढ़ते जा रहे थे नजारे खूबसूरत होते जा रहे थे। पर साथ में बादल भी  गहराते जा रहे थे। आगे बढ़ने पर पगडण्डी खत्म हो गई। रमेश जी से आगे चला नही जा रहा था तो संदीप भाई ने यही से वापिस चलने का सुझाव दिया। लेकिन मुझ में पता नही कहाँ से जोश आया हुआ था मैं नीलकंठ बेस कैप तक जाने को आतुर था। मैंने संदीप भाई को अपना आगे जाने को बोल दिया। मेरे साथ विकास नारायण ने भी आगे जाने का बोल दिया। 

संदीप भाई, रमेश जी और सचिन भाई को लेकर नीचे की तरफ चल दिए। तभी एक लोकल चरवाहा वहाँ से गुजरा जो नीलकंठ बेस कैंप तक जा रहा था। उसे देख मुझ में और जोश आ गया। मैं और विकास आगे चल दिए। आगे का रास्ता बरसाती नालों (अगर अच्छी खासी बरसात हो रही हो तब इन बरसाती नालों को पार करना बहुत ही मुश्किल हो जाता है) और पत्थरों वाला था। धीरे धीरे बारिश होने लगी और मौसम ख़राब होने लगा। चारों तरफ बादल छाने लगे। हम दोनों 1 कि.मी. तक आगे आ गए थे। हमे आगे रास्ते ढूंढ़ने में बहुत ही परेशानी होने लगी। वो चरवाहा भी हमारी आँखों से ओझल हो गया था। वहाँ पर सिर्फ हम दोनों ही थे। हम दोनों ने भी वापिस चलने का निर्णय लिया। वापिस चरण पादुका के पास आ कर हम सब  वहाँ मिल गए।

धर्मशाला के पास पहुँच कर हम सब ने वही पास में भंडारे में कड़ी चावल का आनंद लिया। हमारे दो साथी बीनू और सुमित भी सुबह पहुँच गए थे और वो वसुधारा की तरफ निकल गए थे। अब हम सब ने अगले पाँच दिन के ट्रेक की तैयारी करनी थी। सारा राशन का समान, टेंट, स्लीपिंग बैग  अमित भाई ने हमारे गाइड गज्जू के साथ मिल कर इकठा कर लिए। कुछ साथी शाम को माणा गाँव घूमने निकल गए। मैंने, रमेश जी ने कमरे में ही आराम किया। 11 साथियों के हिसाब से शाम तक सारा समान कमरे में रख दिया। लेकिन रात को रमेश जी और सचिन भाई आगे जाने से इंकार कर दिया। रमेश जी अपने आप को इस यात्रा के लिए फिट नहीं मान रहे थे। हम सब ने उन्हें आगे चलने के लिए प्रोत्साहित किया लेकिन वो आज की चढाई से ही हिम्मत हार चुके थे, और सचिन भाई के घर से किसी जरुरी काम के लिए फ़ोन आ गया था। रमेश जी के लिए मुझे बहुत दुःख था क्योकि वो इस यात्रा को करना चाहता थे। 

अब हम 9 लोग रह गए थे और 5 पोर्टर थे जिन्हे  हमारे साथ चलना था। रात तक हम सब ने (ज्यादातर अमित जी ने) कल से शुरू होने वाली यात्रा की सारी तैयारी कर दी थी। रात को विकास नारायण को एक एक गलती के कारण सब से (ज्यादा बीनू से) डाँट खानी पड़ी। आज की ट्रैकिंग में चरण पादुका के आगे विकास का प्रेशर बना और वो नदी के पास ही बैठ गया। जब सब लोगो को ये बात पता लगी तो बीनू भाई उस पर नदी को गन्दा करने के कारण भड़क गए। बाद में उसने इस बात के लिए माफ़ी भी माँग ली। ये बात मैं इस लिए लिख रहा हूँ जिस से हमें सीख मिले कि हमें प्रकृति की किसी भी चीज को गन्दा नही करना चाहिए। 

अगले भाग में जाने के लिए यहाँ क्लिक करें।  


नीलकंठ पर्वत। ये फोटो मेरे द्वारा खींचा नहीं है। 

ऋषिकेश संध्या का समय 

बद्रीनाथ धाम 




चरण पादुका जाते हुए। 


चरण पादुका से पहले मंदिर। 



मैं, मध्य सचिन त्यागी जी , बाएं रमेश जी। 



अंग्रेज भक्ति में लीन। 

दूर किसी ग्रुप की ट्रेनिंग। 

ज़ूम कर के लिया हुआ फोटो। 

नीलकंठ के रास्ते में झरने। 



मौसम ख़राब होता हुआ। 





धर्मशाला जहाँ हम रुके थे। 




16 comments:

  1. Nice blog, very informative.

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  2. अच्छी शुरुआत ..... बढ़िया ब्लॉग

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  3. बढ़िया भूमिका अब आगे पढ़ने में आनंद आएगा

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    1. शुक्रिया प्रतीक भाई।

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  4. जी सतोपंथ तक तो बहुत से लोग गए हैं। बहुत ही हिम्मत भर काम है जो आप जैसे गिने चुने लोग ही कर पाते हैं, पर कोई भी स्वर्गरोहिणि नही जा पाता।

    इसका कोई विशेष कारण है क्या???

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    1. बिलकुल सही बात है अक्षय जी स्वर्गरोहिणी तक बहुत ही कम लोग जा पाते हैं। इस का कारण आपको आगे की पोस्ट में बताऊंगा।

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  5. बढ़िया शुरुआत । फोटोज भी काफी अच्छे आयें हैं । मेरी भी यहाँ जाने की काफ़ी इच्छा है ।💐

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    1. शुक्रिया नरेश भाई।

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  6. आपका यह लेख श्रृंखला सपनों के बीज मन मे बो दिया हैं। सपना को कब खुली आँखो से देख.सकता हूँ यह समय ही बतायेगा।
    बहुत अच्छा लगा।

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    1. शुक्रिया कपिल भाई।

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  7. Bhut acha ji meri bhi tamana hai me bhi Yatra karo

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    1. चलो दलजीत भाई अगली यात्रा साथ में करतें हैं।

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  8. बहुत बढ़िया सुशिल भाई

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