गाला की ऊँचाई 2350 मीटर
सुबहे 4 बजे नींद खुल गई और नित्य कर्म से निवृत हो कर स्नान ध्यान कर तैयार हो गए। चाय और बोर्नबिटा मिला दूध तैयार था। मैंने थोड़ी चाय ले ली, तभी हम सभी के पोर्टर भी आ गए। पोर्टर ने मेरा बैग उठा लिया और शिव स्तुति एवं जयकारे के साथ लगभग पांच या साढ़े पांच बजे गाला की राह पकड़ ली।
आज हम ने लगभग 15 कि.मी पैदल चलना था और आज का सब से मुश्किल रास्ता रुंगलिंग तक 9 कि.मी का था। रास्ता शुरू में ठीक था, परन्तु आधे कि.मी के बाद से खड़ी चढाई शुरू हो गयी। धीरे धीरे एक दूसरे का मनोबल बढ़ाते हुए, शिव जयकारे के साथ सभी यात्री आगे बढ़ रहे थे। करीब 2 घंटे की खड़ी चढाई के बाद, हमने नाश्ता किया । इस के 3 घंटे की खड़ी चढाई के बाद हम रुंगलिंग पहुंचे। रुंगलिंग तक की खड़ी चढाई का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हम सिरखा जो कि 2230 Mtr पर है से चल कर रुंगलिंग जो कि तक़रीबन 3050 Mtr की ऊंचाई पर है पहुंचे। यहाँ पर एक छोटा सा देवी मंदिर हैं। मैंने , अंजू जी, नीलम जी और अभिलाषा ने मंदिर में दर्शन किये। ( थोड़ा सा परिचय सहयात्रियों का :- अंजू जी जो दिल्ली से हैं पूरी तरह ऊर्जा से भरपूर रहती थी। सब के साथ बहुत जल्दी घुलमिल जाना और अपने सहयात्रीओं का पूरी तरह ख्याल रखती थी। )
यहाँ से चलने के बाद एकदम उतराई शुरू हो गयी और हमने 2 घंटे की उतराई के बाद बरसती नाला पैदल पार किया। काफी पानी था उस में, बारिश के समय कितना पानी रहता होगा और पिछले उत्तरांचल तबाही वर्ष में कितना पानी का वेग रहा होगा वह उस पर बने टूटे पुल से पता लगता था।
पुल पार करने के बाद कुछ दुकाने मिली अब फिर चढाई शुरू हो गयी थी। कुछ और चलने के बाद कैंप से करीब 2 कि.मी पहले हम यात्रियों के लिए I.T.B.P. के जवान बैठने के लिए कुर्सी, एवं चाय और पानी के साथ इंतज़ार करतें मिले कुछ समय उन के साथ बिता कर और उनका धन्यवाद कर हम कैंप के लिए चले, और 12 बजे तक कैंप पहुंच गये। आज का पूरा रास्ता जंगल और हरियाली से भरा हुआ था और 15 कि.मी का रास्ता 6 घंटों में कवर हो गया था।
कैंप में हमारा स्वागत बुरांश के फूलो के शरबत से हुआ। बाहर हमारा धारचूला में जमा सामान पड़ा था अपनी बोरी ढूढ़ कर उसे कमरे ले आया और फिर जा कर बिस्तर पर लेट गया उस के बाद दोपहर का भोजन किया। भोजन के बाद कैंप में आराम किया गया।
शाम को मौसम बहुत ही सुहाना हो गया था। पहाड़ो पर बादल कभी आ रहे थे तो कभी जा रहे थे। इस शानदार मौसम की फोटो ली गई।
अब फिर बैग पैक करना था। पूरी यात्रा में में मुझे सबसे ख़राब काम बार बार बैग खोलना और पैक करना लगा। कुछ सामान भूल जाओ तो फिर पूरा बैग खोलो और पैक करो। चुकि सामान खच्चरों से जाता है और बारिश इत्यादि में भीगता है तो उसी विषेश तरह से पैक करना होता था। मैंने अगले दिन की ज़रूरत का सामान निकाला और बैग पैक करने में लग गया।
शाम को एल.ओ साहब ने अगले दिन की यात्रा के बारे में बताया। अगला दिन काफी कठिन और सावधानी वाला था हमे पूरे रास्ते काली नदी के किनारे किनारे चलना था।
रात्रि के भोजन के सेवन के साथ सभी ने अपने अपने बिस्तरों की राह पकड़ ली।
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सिरखा कैंप से बादलों का मनमोहक दृश्य |
पैदल रास्ता |
रास्ते में छोटा सा सुन्दर गाँव |
यहीं पर सुबह का नाश्ता किया गया था। |
रुंगलिंग में देवी माँ के मंदिर के बाहर दृश्य |
अंजू जी, मैं, अभिलाषा, नीलम जी ( टोपी में ) |
देवी माँ का छोटा सा मंदिर |
जंगल का रास्ता |
बरसाती नाला |
रास्ते में सुन्दर दृश्य |
I.T.B.P. के जवानो द्वारा स्वागत |
गाला कैंप में अंदर कमरे का दृश्य |
शाम को बादलों को निहारते हुए |
कैंप से बाहर शानदार नजारा |
गाला में हमारे रहने की जगह |
Har Har Mahadev
ReplyDeleteबैग का झंझट
ReplyDeleteएक एक चित्र बहुत सुन्दर ! रास्तों पर चलना भी बहुत खूबसूरत लग रहा है !!
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