दारचेन की ऊँचाई - 4670 मीटर
कुल रास्ता : - 130 कि.मी बस से
समय : - 7.30 घंटे
बस तकलाकोट से निकलकर खेतों और करनाली नदी के किनारे पहाड़ी रास्तो की चढाई चढ़ते हुए चल रही थी। सड़क पक्की थी और ट्रैफिक बहुत कम था। कभी कभी कोई गाड़ी दिख जाते थी। निर्जन, वीरान एवं बंजर भूमि हल्की पहाड़ी तथा सपाट मैदान से होकर हमारी बस जा रही थी। दूर-दूर तक हरियाली नजर नही आ रही थी। तिब्बत के पठार का नज़ारा कम सुंदर नहीं था। ऊपर सफ़ेद बर्फ़ से ढ़की चोटियाँ तो नीचे मटमैले पठारों की चोटियों हम तिब्बत की प्राकृति को निहारते चले जा रहे थे। निर्जन सड़क पर चलते-चलते कभी-कभी भेड़ों के झुंड मिल जाते थे। ड्राइवर ने बस में चीनी गीत बजा रखे थे, जिनके बोल हमें बिलकुल समझ नहीं आ रहे थे पर संगीत की मधुरता तो सचमुच डुबोने वाली थी। पीछे कुछ यात्री स्वयं भी कीर्तन कर रहे थे।
लगभग 8.30 बजे हमारी बस एवं जीप एक बड़ी सी झील के किनारे जाकर रूक गई । गुरु ने सभी से नीचे उतरने का आग्रह किया। हम सभी यात्री नीचे उतरे, बस से नीचे उतरते ही तेज ठण्डी हवा महसूस हुई। झील काफी नीचे थी। इस झील का नाम राक्षसताल बताया गया, जैसे ही हम ने झील को देखा तो झील नीलमणि सी चमकती कोई चीज लग रही थी। उसका सौंदर्य मूक कर रहा था। हम देख रहे थे पर शब्द न सूझ रहे थे। हम सभी यात्री इस सुन्दर झील के फोटो खीचने में मग्न हो गए। मेरे ख्याल से निर्मल नील नीर वाली राक्षस-ताल का सौंदर्य शायद दुनिया की सुंदरतम झीलों में आँका जाता होगा।
वहाँ कहीं-कहीं पुराने कपड़े भी पड़े थे, शायद लामा लोग या बौद्ध तीर्थयात्री फेंक जाते होंगे।
मान्यता है कि रावण द्वारा इसी झील के किनारे बैठकर भगवान शिव की कठिन तपस्या किया गया है। इसलिए इस झील को ‘‘रावण ताल” या “राक्षसताल” भी कहते हैं। रावण के कारण राक्षस-ताल अभिशप्त मानी गयी है। किंवदंतियों में इसके जल को विषैला बताया गया है, इसलिए इसके जल का स्पर्श वर्जित माना गया है। पक्षी भी इस का जल नहीं पीते और ना ही इस झील में कोई जीव जन्तु निवास करते हैं।
राक्षसताल झील के बारे में
राक्षसताल तिब्बत में एक झील है जो मानसरोवर और कैलाश पर्वत के पास, उनसे पश्चिम में स्थित है। सतलुज नदी राक्षसतल के उत्तरी छोर से शुरु होती है। पवित्र मानसरोवर और कैलाश के इतना पास होने के बावजूद राक्षसताल हिन्दुओं और बौद्ध-धर्मियों द्वारा पवित्र या पूजनीय नहीं मानी जाती। इसे तिब्बती भाषा में लग्नगर त्सो (ལག་ངར་མཚོ།) कहते हैं। प्रशासनिक रूप से यह तिब्बत के न्गारी विभाग में भारत की सीमा के पास स्थित है।राक्षस ताल लगभग 225 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र, 84 किलोमीटर परिधि तथा 150 फुट गहरे में फैला है। इस झील के तट पर राक्षसों के राजा रावण ने शिव की आराधना की थी। इसलिए इसे राक्षस ताल या रावणहृद भी कहते हैं। एक छोटी नदी गंगा-चू दोनों झीलों को जोड़ती है। जहाँ मानसरोवर का पानी मीठा है, वहाँ राक्षस ताल का खारा है। मानसरोवर में मछलियों और जलीय पौधों की भरमार है, जबकि राक्षस ताल के खारे पानी में यह नहीं पनप पाते। स्थानीय तिब्बती लोग इसके पानी को विषेला मानते हैं। मानसरोवर गोल है और इसे सूरज का और दिन की रौशनी का प्रतीक माना जाता है जबकि राक्षसताल के आकार की तुलना अर्धचंद्र से की जाती है और इसे रात्रि का और अंधेरे का प्रतीक माना जाता है।
यहाँ से कैलाश पर्वत के पहले दर्शन होते हैं, परन्तु बादलों में छुपे होने के कारण हमें दर्शन का सुख प्राप्त नहीं हुआ था। एक घंटा राक्षस ताल पर बिताने के बाद हमारी बस चल पड़ी और थोड़ी देर में बस मानसरोवर झील के किनारे जा कर रुकी। मानसरोवर के पानी में सूरज की किरणे पड़ रही थी जिससे वह चमकीला दिखाई पड़ रहा था ऐसा लग रहा था जैसे तारे मानसरोवर झील में टिमटिमा रहे हो। यात्रीगण बस से उत्तर कर मानसरोवर झील के दर्शन करने लगे। कई यात्री इस पावन झील में स्नान करने लगे और कुछ यात्रीगण पूजा अर्चना करने लगे। झील के पास ही पुलिस चौंकी भी थी। मानसरोवर के किनारे-किनारे दूर में हिमाच्छाादित लंबा पर्वत श्रृखंला लगातार दिखाई दे रहा था।
लगभग आधा घटें के बाद हम लोगो ने दारचेन शहर के लिए प्रस्थान किया। एक बात और यहाँ इतनी ऊंचाई पर सड़के शानदार बनी हुई हैं। दारचेन के रास्ते में हिमालय में अनेक हिमाच्छिदत छोटे-छोटे पर्वत दिखाई दिए। दारचेन कैलाश परिक्रमा का बेस कैंप है हमें शहर के बाहर रोक गया, बस और सामान चेक हुआ और हम लोगो ने शहर में प्रवेश किया।
लगभग 11.30 बजे हम लोग दारचेन पहुंचे। हमारी बस बांऊण्ड्रीवाल से घिरे हुए भवन के पास जाकर रुकी। कैलाश यात्रियों को इसी गेस्ट हाऊस में रूकवाया जाता है। बस के रूकते ही हम लोग अपना-अपना लगेज उतार कर गेस्ट हाऊस में दाखिल हुए। गेस्ट हाउस के सभी कमरे में प्रायः 4-4 बेड लगे हुए थे। बस से उतरते ही तिब्बती महिलाएँ अपनी पारंपरिक वेशभूषा में भागकर हमारे कमरों तक आ गयीं और मोती/स्टोन की बनी मालाएँ और अन्य आभूषण बेचने हेतु प्रदर्शित करने लगीं। लोगो ने जम कर खरीदारी की । सभी सामानों के भाव में मोल-तोल बहुत किया जा रहा था।
1.30 बजे भोजन तैयार होने की सूचना पर भोजन हेतु गए। शाम को 3 बजे दारचेन के स्थानीय बाजार घुमने गए। प्रायः सभी दुकानों के मालिक तिब्बती महिला ही थी। खाने-पीने के सामान के अलावा अन्य सभी सामानों के भाव में मोल-तोल बहुत किया जा रहा था। अंजू जी और hyma जी ने मुझे मालाएँ खरीदने में मेरी सहायता की। आसमान से कोहरा छटने पर दूर पहाड़ों के बीच में शाम को लगभग 5 बजे गेस्ट हाऊस से कैलाश पर्वत के दर्शन हुए। सभी यात्रियों ने कैलाश पर्वत के दर्शन किये। रात्रि भोजन के बाद हम लोग सोने चले गये।
दारचेन के बारे में।
Darchen (Tarchan या Taqin) एक छोटा सा शहर है। यह शहर पवित्र कैलाश पर्वत के बिलकुल सामने हैं। इसकी ऊंचाई 4670 मीटर (15,310 फीट) है और यह कैलाश कोरा का शुरुआती बिंदु है। दारचेन एक तरह से कैलाश और मानसरोवर लेक की प्रक्रिमा में आधार शिविर का काम करता है। दारचेन पहले Lhara के रूप में जाना जाता था। यह पहले भेड़ बकरी चराने वाले खानाबदोशों का एक महत्वपूर्ण स्टेशन था और यहाँ पर दो ही स्थाई भवन थे। इन में से केवल एक सांस्कृतिक क्रांति बच गया और अब तिब्बती तीर्थयात्रियों इस का प्रयोग करतें हैं। दारचेन जबकि पूरी तरह से एक तिब्बती शहर है लेकिन अब अधिक से अधिक चीनी यहाँ आ कर बस गए हैं और उन्होने अपने होटल और रेस्तरां खोल लिए हैं।
तकलाकोट होटल में रिसेप्शनिस्ट और उस का बेटा |
होटल के बाहर खड़ी कार |
रास्ते के सुन्दर दृश्य |
चलती बस से खीचें गए फोटो |
चलती बस से खीचें गए फोटो |
चलती बस से खीचें गए फोटो |
चलती बस से खीचें गए फोटो |
चलती बस से खीचें गए फोटो |
राक्षस ताल का सुन्दर दृश्य |
राक्षस ताल |
सुन्दर राक्षस ताल के सामने मैं |
राक्षस ताल के पास खड़ी हमारी बसें |
राक्षस ताल के बारे में जानकारी देता बोर्ड |
राक्षस ताल के पास कड़ी कार |
तकलाकोट से दारचेन तक का हमारा सफर और राक्षस ताल और मानसरोवर लेक का गूगल मैप से लिया चित्र |
चलती बस से खीचें गए फोटो |
चलती बस से खीचें गए फोटो |
चलती बस से खीचें गए फोटो |
मानसरोवर लेक में सूरज की किरणे चमकती हुई |
मानसरोवर लेक के सामने |
यात्रीगण मानसरोवर लेक में स्नान और ध्यान लगाते हुए |
मानसरोवर लेक में बतख |
चलती बस से खीचें गए फोटो |
चलती बस से खीचें गए फोटो |
दूर दारचेन क़स्बा |
दारचेन में ये सामान होटल में बेचते हुए |
सामान बेचने आई तिब्बती महिला |
कैलाश के प्रथम दर्शन |
दारचेन मार्किट |
दारचेन मार्किट |
wah wah
ReplyDeleteजय भोले नाथ की।
ReplyDeleteयहाँ के नजारे बिल्कुल लेह व लाहौल-स्पीति जैसे है, सोने के दाँत वाली का फ़ोटो भी बढिया रहा और यहाँ की रंग बिरगी बाइकों के कुछ नजदीकी फ़ोटो लिये या नहीं
ReplyDeleteस्वर्ग को और भगवन शिव को अगर साक्षात देखना हो तो यहां से बेहतर जगह कोई नही हो सकती ! जय शिव शंकर
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