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Sunday 11 October 2015

कैलाश मानसरोवर यात्रा----इक्कीसवाँ दिन----गुंजी से बुद्धि

 
कुल रास्ता :- लगभग 19 कि.मी  पैदल 
 

सुबह पाँच बजे कमरे में ही चाय आ गयी हम उठे और दैनिक कार्यों से निपटकर हाथ-मुंह धोकर तैयार हो गए। नाश्ता तैयार हो गया था, यात्री भोजन-कक्ष में पहुँच रहे थे। साढ़े छः बजे सभी तैयार होकर अपने बैग के साथ अहाते में खड़े हो गए। शिव स्तुति और " वीर बजरंगी" एवं "ओम नमः शिवाय" के जयकारे के साथ हमने चलना शुरू किया।
 
पुल पार कर गूंजी गाँव में आ गए। यहीं से एक रास्ता आदि कैलाश को जाता है और जिस किसी ने भी आदि कैलाश जाना हो वो हमारा वापसी वाला रूट (गूंजी से धारचूला ) पकड़ सकता है इस से उस के दो दिन बच जायेगें। यहीं पर एकाध यात्री का अपने पोनी और पोर्टर से पेमेंट को ले कर झगड़ा हो गया। जिस से सभी पोनी पोर्टर वालों ने एकजुट हो कर सामान आगे ले जाने के लिए मना कर दिया। हमारे एल.ओ साहिब ने तुरंत यात्रियों की सुरक्षा के लिए ITBP के अफसर को कहा। उन्होंने यात्रियों की सुरक्षा के लिए कुछ जवानो को साथ भेज दिया। पहले तो उन जवानो ने पोनी पोर्टर वालों को समझाया। लेकिन वो नहीं माने।  गलती दोनों तरफ से थी। जहाँ इस यात्रा के लिए यात्रियों ने इतने पैसे खर्चे हैं वहां 200 -300  में क्या फर्क पड़ता है। वही दूसरी तरफ पोनी पोर्टर की तरफ से 4-5 लोग ही थे। जो सब को भड़का रहे थे। बाकी पोनी-पोर्टर तो हमारे साथ चलने को तैयार थे। अब पोनी,पोर्टर  हमारे साथ नहीं चल रहे थे, जिस कारण हमें अपना बैग खुद उठाना पड़ रहा था। अभी आधा कि.मी. ही गए थे। तभी हमारे पोनी - पोर्टर वापिस आ गए और माफ़ी मांग कर हमारे बैग उठा लिए।  

हमने काली नदी के किनारे किनारे चलना शुरू किया। कुछ देर बाद  हम सीती गाँव आ गया। जहाँ जाते समय हमने लंच किया था। पहले से ही कई यात्री वहाँ बैठे हुए थे। परन्तु हम वहाँ न रुक कर आगे बढ़ गए। मौसम साफ़ था धूप तेज थी, खुली धूप में गर्मी भी हो रही थी। पर नदी किनारे चलते चलते प्रकृति मनमोह रही थी। चलते चलते हम गर्ब्यांग आईटीबीपी चौकी पर पहुँचे। आईटीबीपी चौकी पर हमारी मुलाकात बैच 8 के कैलाश दर्शन को जा रहे यात्रिओ से हुए। हम सबने उन्हें यात्रा निर्विघ्न पूरी करने हेतु शुभकामनाएँ दीं और हौंसला बढ़ाया। 

गर्ब्यांग गाँव की गलियों से जाते समय पहाड़ियों पर बने उनके पंक्तिबद्ध घर दर्शनीय थे। जाते समय की तुलना में अब ज़्यादा रौनक थी। गर्ब्यांग से आगे ऊँची चढ़ाई थी। कैलाश जाते हुए उतराई थी, जिस कारण रास्ते की दुर्गमता का अंदाजा नहीं था। अब इस चढाई पर मेरा दम फूलने लगा। चढाई वाला रास्ता बहुत संकरा था। और आगे बढ़े तो फिर वही हरियाली से भरी छियालेख घाटी कहीं अधिक हरियाली थी। जंगली फूल खिले हुए थे। सौंदर्य मोहक था! पैदल चलने वाले सहयात्री रुक-रुककर दृश्यों को निहार रहे थे।

छियालेख घाटी में हमने दोपहर का खाना खाया और आगे चल दिए, थोड़ा चलने के बाद तीव्र उतराई थी वह से बुद्धि गाँव साफ़ दिखा रहा था। करीब 1.5 घंटे उतरने के बाद हम 3 बजे के करीब बुद्धि कैंप में थे। बुद्धि कैंप की क्यारियों में  बहुत सुंदर हर रंग के फूल खिले थे। संतरे का शरबत हमारा इंतज़ार कर रहा था। थोड़ा आराम करने के बाद हम बाहर आ गए।  बुद्धि में हम ने हेलीकॉप्टर देखा जो एक स्थानीय बीमार महिला को लेने आया था।  स्थानीय नागरिकों को शासन द्वारा मात्र 1100 रुपयों में यह सुविधा उपलब्ध कराई गई है। शाम को मैंने खूबसूरत फूलों के फोटो खींचे। रात्रि का भोजन कर हम लोग सो गए।

नदी के साथ चलते हुए 











दूर नीचे गर्भ्यांग गाँव और चढाई 



छियालेख 




बुद्धि कैंप से लिया गया फोटो 



श्रुती,अनिरुद्ध और मैं 






5 comments:

  1. आपने पिछले लेख में लिखा था कि आप गुंजी तक ट्रक में बैठकर आये। आज आप गुंजी के बाद 15-16 किलोमीटर पैदल चले। सडक कहां गई? वो ट्रक कहां से आये थे वहां?

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  2. बिलकुल नीरज जी सड़क अभी जो बन रही है वो सिर्फ गूंजी से कालापानी तक ही है। गूंजी से गर्बाधार तक या नारायण आश्रम तक पैदल रास्ता ही है। क्यों की गूंजी ITBP वालों का बेस कैंप है। इस लिए जो ट्रक वहाँ थे सड़क बनवाने के लिए वो सब कार्गो हेलीकाप्टर से ही गूंजी बेस कैंप पहुँचे हैं।

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  3. Bahut hi sunder yatra ka vivran diya hai aapne, mujhe to aapka lekh padh ke ye lag raha hai ki main bhi aapke sath kaislash ki yatra kar raha hun.

    itni badhiya jankari ke liye thanks.

    aaj dopahar 12 baje se aapka lekh padh raha tha , chhodne ka man hi nahi kar raha hai,

    lekin koi baat nahi baaki kal padunga

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  4. शुक्रिया गिरी जी और यात्रा का आनंद लीजिये। जय भोले की।

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  5. वापस लौटने पर यात्रा वृतांन्त कुछ निखरता सा महसूस हो रहा है। क्या बात है?

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