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Saturday, 9 September 2017

पांडवों की धरती से स्वर्ग की ओर यात्रा - स्वर्गरोहिणी सतोपंथ यात्रा - 3


कहा जाता है जो यात्री सतोपंथ यात्रा को नंगे पैर करता है अर्थात एक पग नंगे पैर चलने से उसे एक अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है। नंगे पैर इस यात्रा को करने की मैं तो कल्पना भी नही कर सकता। लेकिन हमारे जाट देवता और बीनू भाई ने इस यात्रा को सैंडलों और चप्पलों से पूरी की थी। उसी के उल्ट हम सब ने महँगे ट्रैकिंग जूतों से इस यात्रा को पूरा किया। पहले दिन की यात्रा को इस यात्रा का सब से आसान भाग या आसान ट्रैक कह सकते हैं। यात्रा में असली परीक्षा तो अब शुरू होनी है। क्योकि अभी तक की यात्रा को हम ने पगडण्डी पर चल कर की है, लेकिन आगे की सारी यात्रा बोल्डर (पथरों के ऊपर) पर और बिना किसी पगडण्डी के करनी थी। जिसमे रास्ता भटकने का पूरा खतरा था।

आज हमारी मंजिल लष्मीवन से चक्रतीर्थ (10 कि.मी.) तक थी। सुबह हम सब ने आगे की यात्रा की शुरुआत बड़े ही जोश से शुरू की। सुबह सुबह सूर्य की किरणे पहाड़ों की चोटी पर ऐसे लग रही थी जैसे किसी विश्व सुंदरी के सिर पर सोने का ताज रख दिया गया हो। आगे चल कर सामने एक पहाड़ नजर आता है जहाँ से एक रास्ता अलकापुरी ग्लेश्यिर और दूसरा रास्ता बाई तरफ से सतोपंथ की तरफ जाता है। अलकापुरी ग्लेशियर से ही माता अलकनंदा का उगमन होता है। वैसे तो माता अलकनंदा स्वर्गरोहिणी के पास विष्णु कुंड से निकल कर अलकापुरी में दिखाई देती है। इसीलिए इसको विष्णुपदी गंगा भी कहते हैं।



यहाँ पर रास्ता भटकने के पुरे आसार है। हम में से कुछ जन रास्ता भटक कर ग्लेशियर की तरफ चले गए थे। लेकिन बीनू भाई ने हमे पीछे से आवाज लगा कर हमें वापिस मुड़ने को कहा। मैं और संजीव भाई आवाज सुनते ही वापिस हो गए। लेकिन हमारे दो साथी अभी भी ग्लेशियर की तरफ जा रहे थे। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए हमारा गाइड जल्दी से ग्लेशियर की तरफ गया इतने में बाकी साथी भी वापिस आ रहे थे। अगर आप गलती से ग्लेशियर की तरफ चले गए और भटक कर किसी क्रेवास में गिर गए तो आप की मृत्यु निश्चित है। तभी इस यात्रा के लिए गाइड का होना जरुरी है।

आगे का रास्ता पथरों या कही कही पगडंडी के ऊपर से चल कर चलना पड़ता है। आगे बढ़ने पर बाएं तरफ पहाड़ से एक बहुत ही खूबसूरत झरना बह रहा है। झरना पार करने के लिए पथरों के ऊपर से रास्ता ढूंढ़ना पड़ता है। थोड़ा सा आगे जाने पर बाई तरफ पहाड़ रूपी चट्टान नजर आती है जिस पर काफी सारे झरने एक ही कतार में नजर आते हैं। यहाँ का दृश्य मंत्रमुग्ध करने वाला है। एक साथ इतने सारे झरने देख कर यात्री सारी थकावट को भूल ही जाते हैं और ये दृश्य प्रभु की माया का एहसास होता है। ऐसा दृश्य मैंने अपने पूरे जीवन में अभी तक नहीं देखा। ऐसा लग रहा था जैसे मैं धरती पर नही किसी स्वर्ग लोक में हूँ। इस स्थान को सहस्त्रधारा के नाम से जाना जाता है। पाँच पांडवों में से सहदेव इस स्थान तक ही पहुँच सका था और सहस्त्रधारा के पास ही सहदेव ने अपना शरीर छोड़ दिया था। भीम ने युधिष्टर से सहदेव के देह त्यागने  का कारण पूछा तब युधिष्ठिर ने बताया कि सहदेव किसी को भी अपने जैसा बिद्वान नही समझता था और इसी भाव का त्याग ना करने के कारण उसे मृत्यु प्राप्त हुई। कहते है इस यात्रा में यात्रियों को स्वान जरूर मिलते हैं जो आपके साथ चलते हैं और यात्रिओं को सतोपंथ तक ले कर जाते हैं। कहते हैं जब पाँच पांडव स्वर्ग के रास्ते जा रहे थे तो उन्हें भी एक स्वान मिला था। जो कि युधिष्ठिर की परीक्षा लेने के लिए स्वयं धर्मराज ने स्वान का भेष ले रखा था। लेकिन हमें जाते हुए तो नहीं लेकिन वापिसी में स्वान के दर्शन जरूर हुए थे।

सहस्त्रधारा के इस मैदान में धाराओं के कारण पानी का तालाब बन गया था। हम सब थके होने के कारण वहाँ स्नान करने का निश्चय किया। लेकिन पानी बहुत ही ठंडा था जिसके कारण सब ने नहाने से मना कर दिया। सिर्फ संजीव त्यागी जी उस पानी में नहाये। सहस्त्रधारा को पार करके एक तलवारनुमा पहाड़ी पर चलना पड़ता है। जिसके एक तरफ खाई और दूसरी तरफ ग्लेशियर है। आगे हमें नीलकंठ पर्वत के दर्शन होते हैं। हम नीलकंठ पर्वत के बिलकुल पीछे हैं। आगे चल कर नीचे उतर कर मैदानी जगह आती है। ये जगह अपने आप में ही निराली है। इस मैदानी इलाके में पानी की जल धाराएं बह रही हैं। हम सब ने यहाँ पर कुछ समय व्यतीत किया। थोड़ी दुरी पर रास्ते में हमारे पोर्टरों ने दोपहर का भोजन मैगी तैयार कर दी। जैसे जैसे हम उन तक पहुँच रहे थे तो वो हमें मैगी देते जा रहे थे। 

सहस्त्रधारा के तीन कि.मी. के बाद आता है चक्रतीर्थ। चक्रतीर्थ एक बहुत बड़ा मैदान है जो कटोरे के समान गोलाकार  है। पाँच पाँडवों में वीर अर्जुन चक्रतीर्थ तक ही आ सका था। इसी जगह पर अर्जुन ने अपना शरीर त्याग दिया था। भीम के पूछने पर युधिष्ठिर ने अर्जुन की मृत्यु का कारण अपने पराक्रम पर अभिमान के भाव को ना त्यागने का बताया। इसके आगे भीम, युधिष्ठिर और स्वान के रूप में धर्मराज गए थे। चक्रतीर्थ में कई गुफायें भी हैं। ज्यादातर यात्री यही पर रात्रि विश्राम करते हैं।

हम दोपहर को 2 बजे के करीब चक्रतीर्थ पहुँच गए थे। चक्रतीर्थ समुंद्र तल से 4100 मी. की ऊंचाई पर स्थित है। हमारे पहुँचने से पहले ही अमित भाई ने दो गुफाओं के पास ही टैंट लगा लिए थे। एक गुफा में हमारी रसोई और दूसरी गुफा में जाट देवता और सुमित भाई ने अपना सोने का इंतजाम किया था। बाकि सब अपने अपने टेंटों में चले गए। शाम को हम सब ने गरमा गर्म चाय पी कर थकावट को दूर किया। 

शाम को एक और घटना विकास भाई के साथ हुई। आराम करते हुए किसी बात पर विकास भाई और संजीव त्यागी जी के बीच कुछ अनबन हो गई। जिसके कारण बीनू भाई ने विकास को डांट दिया। इन बातों से नाराज हो कर विकास अकेला ही वापिसी वाले रास्ते की तरफ चला गया। हम सब ने सोचा वो थोड़ी देर में आ जाएगा। जब एक घंटे बाद वो नहीं आया तब हम सब को चिंता होने लगी। आधे घंटे बाद बूंदाबादी शुरू हो गई। हम सब किसी अनहोनी की आशंका से घबराने लगे। हम सोच रहे थे अगर वो वापिस लष्मीवन की तरफ जा रहा है तो वो वहाँ तक पहुँच नहीं पाएंगे। हम सब गज्जू गाइड को उसको ढूंढ़ने के लिए भेजने वाले थे। तभी हमे वो दूर से आता दिखाई दिया। हम सब की जान में जान आ गयी। इतनी ऊंचाई पर आप के शरीर में काफी बदलाव देखने को मिलते हैं। आप की भूख कम हो जाती है, रात को नींद नहीं आती, चिड़चिड़ा होना, सिर दर्द होना शुरू हो जाता है। हम सब को इन बदलावों का सामना करना पड़ रहा था। रात को हम सब को भी ऊंचाई के कारण नींद आने में दिक्कत हुई थी।

इन मुश्किलों के इलावा एक और मुश्किल ने हम सब में घबराहट पैदा की हुई थी। वो ये, चक्रतीर्थ के सामने ऊंचाई पर एक पहाड़ी धार थी जिस तक हमें सुबह पहुँचना था। मुश्किल ये थी जब हम उस धार की तरफ देख रहे थे तो हमें अपने सिर को बिलकुल ऊपर की तरफ करना पड़ रहा था। जिस से उस धार की ऊंचाई का अंदाजा हो रहा था और उस ऊंचाई को देख कर हम सब के मन में डर पैदा हो रहा था। चलो उस धार के बारे में अगली पोस्ट में बताऊंगा। 

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चोटी पर सूर्य की किरणे। 


सुबह लष्मीवन से निकलते हुए। 

बोल्डर इलाका शुरू। 



इसी गलत रास्ते की तरफ चले गए थे। 

सही रास्ता ये है बाईं तरफ से। 

रास्ते के सुंदर दृश्य 



जाट देवता जी का स्टाइल और सैंडलों से यात्रा करते हुए। 

खूबसूरत झरना। 

दूर सहस्त्रधारा। 



धार पर चलते हुए। 

बाईं तरफ सहस्त्रधारा, बीच में धार और दाईं तरफ ग्लेशियर। 



सहस्त्रधारा 







इन्ही निशनों को देख कर रास्ते का पता चलता है। 

सामने कटोरे के आकार में चक्रतीर्थ 

जाट देवता और सुमित नौटियाल का आज का विश्राम स्थल। 

हमारी आज की रसोई। 

हमारे टेंट। 
    

Saturday, 2 September 2017

पांडवों की धरती से स्वर्ग की ओर यात्रा - स्वर्गरोहिणी सतोपंथ यात्रा - 2



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सतो का अर्थ है 'स्वर्ग' और पंथ का अर्थ है 'रास्ता'। सतोपंथ का अर्थ हुआ 'स्वर्ग का रास्ता '। सच में यह यात्रा स्वर्ग का एहसास करवाती है। कहते हैं स्वर्ग आसानी से नहीं मिलता उसी तरह सतोपंथ (स्वर्ग का रास्ता) का रास्ता भी आसान नही है। जब पाँचों पांडव द्रोपदी के साथ हिमालय के इस क्षेत्र में पहुँचे तब उन्हें आगे जाने का कोई रास्ता दिखाई नही दिया। तब उन्होंने भगवान् शिव का ध्यान किया। भगवान् शिव ने उन्हें आगे जाने का रास्ता बताया और अग्निदेव के सामने उनको अपने सारे अस्त्र - शस्त्र और अपने समस्त भावों को त्यागने को कहा। सबने भगवान शिव के कहे का अनुसरण किया, जिस से वो सशरीर स्वर्ग जा सके। इसलिए इसे ' सच्चाई का रास्ता ' भी कहते हैं। 

दुर्गम रास्तों, चट्टानों और ग्लेशियर के बीच में से हो कर की गई यह यात्रा सच में एक अलौकिक शक्ति का एहसास करवाती है आईये चलिए ऐसी धार्मिक और कठिन यात्रा पर जहाँ प्राणी सशरीर स्वर्ग जा सकता है 

अगले दिन सुबह सब जल्दी उठ कर यात्रा के लिए तैयार हो गए। धर्मशाला के पास ही हमने नाश्ते में परांठे खाये और दोपहर के लिए भी परांठे पैक करवा लिए। बद्रीविशाल को नमन कर के हम स्वर्ग जाने के रास्ते की तरफ चल दिए। वैसे तो ये यात्रा माणा गाँव से हो कर वसुधारा से धानु ग्लेशियर पार कर के होती है। लेकिन इस बार धानु ग्लेशियर बर्फ कम पड़ने की वजह से जल्दी ही फट गया जिस कारण उसे पार करना असंभव था। माणा गाँव से आगे भीमशिला को पार कर के एक कुलदेवी का मंदिर है जहाँ पर द्रोपदी अपनी स्वर्ग की यात्रा के समय लड़खड़ा कर गिर गई। गिरने पर भीम ने युधिष्टर से इस का कारण पूछा। तब युधिष्टर ने बताया द्रोपदी पाँचो पांडवो में सब से ज्यादा अर्जुन को चाहती थी। भेदभाव के भाव को ना त्याग पाने की वजह से द्रोपदी की ये हालत हुई। यही पर द्रोपदी ने अपना शरीर त्यागा था। 
मुझे इस यात्रा में एक डर लग रहा था वो ये, मैंने आज तक जितने भी ट्रेक किये हैं वो सब बिना बोझ के किये हैं, लेकिन इस ट्रेक को मैं 7-8 किलो के बैग के साथ कर रहा था। जिस कारण मन में शंका थी कही बैग के बोझ से मेरी यात्रा अधूरी ना रह जाये। 

बदीनाथ से सतोपंथ की यात्रा 25 कि.मी. के करीब है। आज हमने बद्रीनाथ से लष्मीवन (10 कि.मी.) तक जाना था। बद्रीनाथ से 2 कि.मी. जाने के बाद नाग नागिनी का छोटा सा मंदिर आता है। मंदिर में नमन कर हम आगे बढ़ गए। आगे बढ़ने पर  प्राकृतिक नज़ारे बढ़ते जा रहे थे। चारों तरफ सुंदरता ही सुंदरता नजर आ रही थी। बद्रीनाथ से 3 कि.मी. बाद माता मूर्ति का मंदिर है। माता मूर्ति भगवान् नर नारायण की माता है। कहते हैं यहाँ वर्ष में एक बार मेला लगता है और वामन द्वादशी के दिन भगवान् नर नारायण यहाँ पर अपनी माता का आश्रीवाद लेने आते हैं। हमने सबने यहाँ पर यात्रा पूरी होने का माता से आश्रीवाद लिया। आगे बढ़ने पर पगडण्डी शुरू हो गई। पगडण्डी बहुत ही छोटी है। सब एक दूसरे एक आगे पीछे चल रहे थे। हमारे बाई तरफ पहाड़ और दाईं तरफ नीचे अलकनंदा नदी का संगीत हमारी यात्रा के रोमांच को बढ़ा रहा था। 

प्राकृतिक नजारों और जबरदस्त चढाई का आनंद लेते हुए हम आनंद वन पहुँच गए। आनंद वन एक छोटा सा घास का मैदान है। यहाँ पर चल रही ठंडी हवा के झोंकों और मखमली घास पर आराम करके सच में आनंद आ गया। आनंद वन के आगे जबरदस्त ढलान उतर कर पगडण्डी खत्म होकर पत्थर शुरू हो जाते हैं और ग्लेश्यिर आ जाता है। ग्लेश्यिर के नीचे अलकनंदा का पानी पुरे वेग से चल रहा है जिसे देख डर लगता है। यहाँ आ कर रास्ता मुश्किल हो जाता है आपको हर पग ध्यान से देख कर रखना होता है। चट्टानों को पार कर ग्लेश्यिर को पार करना पड़ता है। 

ग्लेश्यिर को देख कर हम सब के मन में डर पैदा हो गया। क्योकि अगर ग्लेश्यिर पर चलते समय थोड़ी सी भी लापरवाही हुई तो आप फिसल कर सीधे अलकनंदा नदी में समा जाओगे। हम सब ने बड़ी सावधानी से उस ग्लेश्यिर को पार किया। ग्लेश्यिर पार करते ही 100 मीटर की चढाई चढ़ कर एक हरा भरा मैदान सा आ जाता है। हम सब ने उस मैदान में आराम किया। यहाँ पर हमें पता चला हमारे एक पोर्टर को बुखार है, हम ने उसे बुखार की गोली देकर वापिस भेज दिया। यहाँ से अलकनंदा के दूसरी तरफ सामने बसुधारा के दर्शन होते हैं। पहाड़ की चोटियों से बसुधारा का जल मोतियों की तरह दिखता है। हवा के वेग से बसुधारा का जल हवा में ही बिखर जाता है। इस बसुधारा के बारे में स्कंदपुराण कहा गया  है जो मनुष्य पाखंडी और पापी हो उस पर इस जलधारा का जल नही गिरता। 

इसके आगे चमटोली बुग्याल आता है। ज्यादातर लोग यही पर अपना कैंप लगते हैं। हमारे साथ चल रहे एक अन्य ग्रुप ने यही पर अपने टैण्ट लगाए थे। लेकिन हमारी मंज़िल लष्मीवन थी। आगे बढ़ते हुए अचानक बारिश शुरू हो गई। हम सब ने एक बहुत बड़े पत्थर के नीचे शरण ली। लगे हाथ हम सब ने अपने साथ लाये परांठो के साथ पार्टी की। बारिश के साथ एक बड़े से पत्थर के नीचे परांठो का लुत्फ सच कहूँ तो किसी बड़े होटल में भी नही मिल सकता। लष्मीवन पहुंचते ही बहुत बड़ा मैदान नजर आता है। लष्मीवन में आकर बहुत बड़े बड़े भोजपत्र के बृक्ष मिलते हैं। 

लष्मीवन की समुद्र तल से ऊंचाई 3650 मीटर है। इतनी ऊंचाई पर भोजपत्र के वृक्ष मिलना अचरज में डाल देता है। पुराने समय में ऋषि मुनि इन्ही भोजपत्र की छाल निकाल कर उनके ऊपर ग्रन्थ लिखते थे। जब पाँच पांडव स्वर्ग की ओर यात्रा कर रहे थे तो नकुल जी ने इसी जगह अपना शरीर त्याग दिया था। जब नकुल इस स्थान पर गिर गए थे तो भीम ने फिर युधिष्टर से इस का कारण पूछा तो युधिष्टर बोले नकुल को अपने रूप पर अभिमान था और इसी भाव को ना त्यागने के कारण उनकी ये गति हुई है। ज्यादातर यात्री स्वर्गरोहिणी यात्रा का पहला विश्राम यही करते हैं।  

जब तक हम वहाँ पहुँचे तो अमित भाई सब से पहले पहुँच कर टैण्ट लगा चुके थे। वहाँ पहुँच कर मैं तो घास पर ही लेट गया और थोड़ी देर के लिए झपकी ली। थोड़ी देर बाद हमारे बाकी के साथी भी आ गए। शाम को हमारे गाइड और पोर्टरों ने शाम के खाने की तैयारी शुरू कर दी। हमारी रसोई वहाँ पर मौजूद एक गुफा में थी। मै, जाट देवता, योगी भाई और विकास भोजपत्र के वृक्षों की तरफ चल दिए। हम काफी देर वहाँ पर प्रकृति का आनंद लेते रहे। बसुधारा यहाँ से अच्छे से दिख रही थी। जब दिन ढलने लगा और ठंडक बढ़ने लगी तब हम अपने टैण्टो की तरफ आ गए। रात के खाने से पहले हम ने सूप का आनंद लिया और दाल चावल खा कर अपने अपने स्लीपिंग बैग में घुस  गए। कुछ मित्र रात तक ताश खेलते रहे। मैंने, योगी भाई और विकास नारायण ने आज एक ही टैण्ट में रात गुजारी।   

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रास्ते के दृश्य 

नाग नागिनी मंदिर। 

रास्ते के दृश्य 

सामने लाल रंग में माता मूर्ति मंदिर 

खेतों के बीच में से रास्ता। 

संकरा रास्ता शुरू। 



आगे कमल भाई, मध्य संजीव भाई, पीछे योगी भाई। 

बीनू भाई रास्ता दिखते हुए। 

आनंद वन की तरफ बढ़ते हुए। 

आनंद वन में विश्राम करते हुए।  

पीछे ग्लेशियर 

आनंद वन से ग्लेशियर की तरफ 

जबरदस्त ढलान। 

पीछे जाट देवता जी रास्ता देखते हुए। 
ग्लेशियर पार करते हुए। 

ग्लेशियर पार करते हुए अगर फिसलते तो सीधा नीचे अलकनंदा में जाते। 

ग्लेशियर पार करके चैन की साँस लेते हुए। 

ग्लेशियर पार कर ऊपर चढ़ते ही हरा भरा घास का मैदान। 


दूर वसुधारा। 


वसुधारा और नीचे कैंप लगे हुए। 

बारिश में इसी पहाड़ के नीचे परांठों की पार्टी की। 
पराँठा पार्टी। 

लष्मीवन में गुफा में हमारी रसोई। 

भोजपत्र के वृक्ष। 





हमारे कैंप। 



हमारा रात का भोजन