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Saturday, 11 February 2017

डगशाई-----एक छोटा सा और प्यारा सा हिल स्टेशन और भारत की टॉप 25 हॉन्टेड जगह में से एक।

पिछले लेख में मैंने लुटरु महादेव और अर्की के किले के बारे में बताया था। जखोली में भद्रकाली मंदिर से निकल कर हम कुनिहार की तरफ चल पड़े। पहले हमारा वापिसी का प्लान दूसरे रास्ते से था। लेकिन लुटरु महादेव गुफा में कुछ व्यक्ति कुनिहार में एक और शिव गुफा की बात कर रहे थे। उस शिव गुफा को भी देखने से मैं अपने आप को रोक ना सका। खैर हम कुनिहार पहुँच कर शिव गुफा आ गए। गर्मी अपने पुरे जोरों पर थी। गुफा के बाहर बड़ा सा बरामदा था। गर्मी की वजह से फर्श पर पैर नहीं रखे जा रहे थे। उस समय गुफा के आस पास वीरानी सी छाई हुई थी। जैसे ही हम गुफा में प्रवेश किये, ठंडक का एहसास हुआ। पूरी गुफा में ठंडक थी जैसे A.C चल रहा हो। ये शिव गुफा लुटरु महादेव जितनी ही थी। गुफा में प्रवेश करते ही सामने एक चबूतरा बना हुआ था। चबूतरे पर चढ़ने के लिए सीढ़िया बनी हुई थी। चबूतरे पर एक बड़ी चट्टान थी, जो अमरनाथ के शिवलिंग जैसी लगती है। कुछ देर वहाँ रुक कर हम वापिस अपनी कार में आ कर बैठ गए। अब हमारी मंज़िल डगशाई थी। धर्मपुर पहुँच कर हम डगशाई की तरफ चल दिए। धर्मपुर से डगशाई 5 कि.मी. की दुरी पर है। डगशाई की तरफ मुड़ने के आधा कि.मी. बाद ही सेना के जवानों द्वारा id प्रूफ देखा जाता है। डगशाई में देखने लायक यहाँ की सेंट्रल जेल, संग्रालय छोटा सा चर्च और एक कब्रिस्तान है। अब आप सोचेगें कब्रिस्तान में देखने लायक क्या है ? लेकिन यहाँ के कब्रिस्तान में एक खासियत है जिसके बारे में बाद में बताऊंगा।

डगशाई के बारे मे 

डगशाई हिमाचल प्रदेश के जिला सोलन का एक प्राचीन कैंटोनमेंट शहर है। यह समुद्र तल से 6087 फ़ीट की ऊँचाई पर एक पहाड़ी पर स्थित है। इसकी स्थापना 1847 ईo में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा पटियाला के महाराज भूपिंदर सिंह से दान में प्राप्त किये गए पाँच गाँवों से की गई थी। इन गाँवों के नाम ढाबली, वधतियाला, चुनावद, जावग और डगशाई थे। छावनी बनाने के पीछे एक मात्र मकसद इसकी सामरिक महत्ता थी, जिसके द्वारा पडोसी क्षेत्रों के शासको द्वारा खतरों से आसानी से निपटा जा सके।  डगशाई के बढ़ते महत्व को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने यहाँ दो रेजिमेंट तैनात कर दी थी। कहा जाता है प्राचीन समय में यहाँ 400 से भी ज्यादा थोक विक्रेता की दुकाने थी, जो न केवल डगशाई में अपितु आसपास स्थित सोलन आदि क्षेत्रों को सामान मुहैया कराती थी।

स्थानीय किवंदती के अनुसार, डगशाई नाम उर्दू वाक्य "दाग-ए-शाही " से लिया गया है, जिससे पता चलता है कि मुगलों के शासन काल में खूंखार अपराधियों के माथे पर लोहे की गर्म सलाख से दाग लगा दिया जाता था, जिसे "दाग-ए-शाही" कहा जाता था और उन कैदियों को डगशाई भेज दिया जाता था।

ऐसा माना जाता है कम से कम चार भारतीय क्रांतिकारियों को डगशाई में मृत्यु दंड दिया गया था। ये मई 1914 में सिंगापुर के एक धनी व्यापारी बाबा गुरदित सिंह द्वारा एक अनुबंध के तहत जापान के जहाज कामागाटामारू में 350 भूतपूर्व सिख सैनिकों के साथ कनाडा जा रहे थे। कनाडा में इन्हें उतरने की अनुमति नहीं दी गई और इन्हें कलकता भेज दिया गया। जहाँ इन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया और इनमे से 4 को डगशाई जेल भेजा गया और उन्हें फाँसी दी गई।

डगशाई जेल

1849 ई० में रु 72,873 की लागत से बनी इस जेल में 54 कैद कक्ष हैं। इनमे से 16 कैद कक्ष का उपयोग कठोर दंड देने के लिए किया जाता था।  प्रत्येक कक्ष का का भूतल क्षेत्रफल 8*12 फिट है और छत 20 फिट ऊँची है। हवा आने के लिए 1*2 फिट की मजबूत खिड़की दी गई है। जेल के सभी दरवाजे सागौन की मजबूत लकड़ी से बने हुए हैं। दरवाजों के बीच लोहे से बनी छड़ें फिट की गई हैं। एक कैद कक्ष में तो अलग से दंड देने के लिए था उस कक्ष में तीन दरवाजे हैं। अंदर के दरवाजे बंद करके फिर कैदी को खड़ा कर दिया जाये और बाहर का अंतिम दरवाजा भी बंद कर दिया जाये तो जगह कम होने के कारण कैदी सिर्फ खड़ा ही रह जाएगा, वो चल फिर नहीं सकेगा। जब आयरिश स्वतंत्रता सेनानियों को इस जेल में कैद किया गया तब महात्मा गांधी जी एक दिन के लिए इस जेल में उनके पास रहने गए, उन्हें नैतिक समर्थन देने के लिए।

डगशाई संग्रालय

आज हिमाचल प्रदेश के टूरिज्म विभाग और यहाँ के ब्रिगेड कमांडर की मदद से इस जेल संग्रालय को अच्छी तरह से संभाला गया है। संग्रालय में तब के जमाने की कई तस्वीरें, तोपखाने के उपकरण और कई अन्य भारत के इतिहास से सम्बंधित दस्तावेज रखें हैं।

यहाँ पर एक पानी खीचने का पुराने समय का यंत्र ( पंप ) भी है। स्कॉटलैंड निर्मित इस पानी खीचने के यंत्र का निर्माण ग्लेनफिल्ड एंड केनेडी लिमिटेड नामक कम्पनी ने बनाया था। इस कंपनी की स्थापना 1865 ई० में स्कॉटलैंड में हुई थी, जिसे द्रवचालित इंजीनियरिंग में निपुणता हासिल थी। इनके उत्पाद पुरे विश्व में बिकते थे।  इस का कार्यलय लन्दन के साथ साथ बम्बई  और कोलकाता में भी थे। यहाँ पर जो यंत्र रखा गया है वो पूरी तरह से चालू अवस्था में है और आज की तारीख में इस कीमत 1 करोड़ के करीब है।  

डगशाई कब्रिस्तान 

डगशाई भारत की हॉन्टेड जगहों में से एक है। यहाँ के लोगों को सिर पर टोपी रखे आदमी का भूत दिखता रहता है। कब्रिस्तान डगशाई जेल से 1 कि.मी की दुरी पर स्थित है। कब्रिस्तान के अंदर जाने से पहले एक टुटा सा पुराना ईंटों से बना दरवाजा आता है। कब्रिस्तान की हालत बहुत ही ख़राब है। जगह जगह घास और झाड़ियां उगी हुई हैं।
कब्रिस्तान के अंदर जाने का रास्ता 
डगशाई का कब्रिस्तान एक महिला की कब्र के कारण प्रसिद्ध है। इस कब्रिस्तान में एक महिला की संगमरमर की मूर्ति जिसके पीछे एक परी अपने दोनों हाथों से आश्रीवाद दे रही है। यह महिला एक अधिकारी की पत्नी जिस का नाम मैरी रेबेका, जिस की मृत्यु अपने अजन्मे बच्चे के साथ दिसम्बर 1909 में डगशाई में हुई थी। ब्रिटिश शासन के समय इस कब्रिस्तान में किसी भारीतय को जाने की इजाजत नहीं थी। मैरी रेबेका की कहानी इस प्रकार है।

एक बार मैरी डगशाई में टहल रही थी।  टहलते हुए वो पीर बाबा के पास से गुजरी। बाबा ने उस के चेहरे की तरफ देख कर जान लिया, ये महिला नि:संतान है। बाबा ने मैरी को एक ताबीज पहनने को दिया और कहा इसे पहनने के बाद वो निश्चित रूप से गर्भवती हो जाएगी। मैरी गर्भवती तो हुई , मगर दुर्भाग्यवश बच्चे को जन्म देते समय मैरी की मृत्यु हो गई। अधिकारी द्वारा बनाई अपनी पत्नी की कब्र के ऊपर संगमरमर का स्मारक लोगो में अब एक अजीब सा अन्धविश्वास बन गया है कि अगर कोई महिला इस संगमरमर का टुकड़ा अपने पास रखे तो वो गर्भवती हो जाएगी। इसी अन्धविश्वास के कारण आज कब्र के ऊपर सुंदर वास्तुकला का नमूना क्षतिग्रस्त हो गया है।

डगशाई चर्च

सेंट पैट्रिक रोमन कैथोलिक चर्च उतर भारत का सब से पुराना और डगशाई छावनी का पहला चर्च है। इस की योजना अगस्त 1835 में पारित की गई और अंतिम कार्य समाप्ति सन 1852 में 5030 रूपये की लागत में पूरा हुआ था। जब हम यहाँ पहुंचे उस समय यह बंद था। हमने बाहर से इसके दर्शन किये। 

इस के इलावा 'डगशाई पर्वत' पाइपर धुन भी बहुत प्रसिद्द है। यहाँ पर आर्मी पब्लिक स्कूल और डगशाई पब्लिक स्कूल भी है। शिमला कालका हाईवे पर बसा यह छोटा सा क़स्बा डगशाई भले ही पर्यटन की दृष्टि में ज्यादा विकसित न हो पर यह कस्बा अपने आप में अनूठा इतिहास समेटे हुए है। यहाँ पर कोई साइबर कैफ़े, प्रसिद्ध फास्ट फ़ूड या रिसोर्ट नही है, पर यहाँ का शांत वातावरण आप को जरूर पसंद आएगा। दोस्तों यहाँ एक बार तो आना बनता है। इतना मैं दावे के साथ कह सकता हूँ यहाँ आ कर आप निराश नही होंगें।  

पिछले भाग में जाने के लिए यहाँ क्लिक करें .... 


कुनिहार में शिव गुफा की तरफ जाता हुआ रास्ता 

मंदिर का प्रांगण 

गुफा का प्रवेश द्धार 

गुफा के अंदर का दृश्य 





डगशाई म्यूजियम 

जेल  के अंदर का दृश्य 

खड़े होने के बाद कैदी हिल भी नही सकता 





म्यूजियम के अंदर रखे यंत्र 



'डगशाई पर्वत' पाइपर धुन 

डगशाई पर्वत पाइपर धुन की कहानी 


यही वो यंत्र है जिस की कीमत 1 करोड़ के करीब है 

यही वो यंत्र है जिस की कीमत 1 करोड़ के करीब है 


डगशाई चर्च 



मैरी रेबेका की कब्र 


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