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Saturday 14 May 2016

मणिमहेश कैलाश यात्रा -- भाग - 2

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सुबह हम 5.30 बजे हम अगले पड़ाव हड़सर की तरफ चल पड़े। भरमौर से हड़सर 9 km की दुरी पर है। 20 मिनट में हम हड़सर पहुँच गए। हड़सर आखिरी पड़ाव है, इस के आगे 14 km यात्रा पैदल करनी होती है। किसी जमाने में यह यात्रा पैदल चम्बा से आरम्भ की जाती थी। सड़क बन जाने के कारण ये यात्रा भरमौर से आरम्भ होती रही और अब यह स्थारण तौर पर यात्रियों के लिए यह यात्रा हड़सर से शुरू होती है। लेकिन यहाँ के स्थानीय ब्राह्मणों-साधुओं द्वारा आयोजित परंपरिक छड़ी यात्रा आज भी प्राचीन परम्परा के अनुसार चम्बा के लक्ष्मी नारायण मंदिर से आरम्भ होती है। 


हड़सर के बारे में 
 
हड़सर में सिवाय शिव मंदिर और मणिमहेश यात्रा का एक पड़ाव होने के इलावा कोई तीर्थ स्थान नहीं। हड़सर का नाम कैसे पड़ा होगा इसके बारे में तो नहीं बताया जा सकता, लेकिन हड + सर से यही मतलब निकाला जा सकता है कि यह स्थान पहले मृतकों की अस्थियां प्रवाहित करने का स्थान रहा होगा। बुड्डल नाले में पुराने लोग अस्थियां प्रवाहित करते होंगे। इस कारण इसे हड़सर कहा जाने लगा होगा। 

सुबह 6 बजे के करीब हम ने नदी की तरफ से भोले का नाम ले कर पैदल यात्रा शुरू कर दी। हड़सर से मणिमहेश की चढाई तक़रीबन 15 km है। अभी चढाई शुरू ही की थी कि पोनी पोर्टर वाले हम से घोड़े पर बैठने और समान उठाने के लिए कहने लगे। हड़सर में ही पोनी और पोर्टर मिल जाते हैं। पोनी पोर्टर वालों को जिला मजिस्ट्रेट ने पहचान पत्र जारी किये हुए हैं। हम ने एक पोर्टर कर के उस को अपने बैग दे दिए और आगे चल दिए। आधा कि.मी. चलने के बाद हमे गुई नाला खड्ड में पहला भंडारा पंजाब के लहरगगघा वालों का मिला जिसे भाई के साडू साहिब द्वारा लगाया गया था। इस यात्रा में भंडारा लगाने के लिए वो दो महीना पहले तैयारी शुरू कर देते हैं और 20 दिन यहाँ पर अपना बिज़नेस छोड़ कर यात्रियों की सेवा में लग जाते हैं। दो साल पहले मेरा भी प्रोग्राम बन गया था इन के साथ यहाँ लंगर में सेवा करने का, पर बिलकुल मौके पर जा नहीं सका। खैर हम ने यहाँ चाय पी। इतना तो तय था कि माया जी आगे पैदल नहीं जा पाएंगी। तो उनके लिए यहीं से पोनी का इंतजाम किया गया। अंजू जी का तो पूरा मन था पैदल यात्रा का, लेकिन माया जी के कारण उनको भी पोनी करना पड़ा। पिछली बार मैं इस यात्रा को पैदल पूरा नहीं कर पाया था। आखिर के चार कि.मी. मुझे पोनी पर करने पड़े थे। उस का भी एक कारण था क्योंकि पिछली बार चढाई वाले दिन मेरा व्रत था जिस कारण खाली पेट चढाई करनी पड़ी थी, दूसरा ट्रैकिंग करने के बेसिक रूल को फॉलो नहीं किया था। वो गलती थी, जब भी पानी पीने के लिए रुकता पेट भर पानी पिया । जबकि ट्रैकिंग करते हुए हमे सिप सिप कर के पानी पीना चाहिए।